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________________ लेकिन क्योंकि हम एक पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं, पुरुष ताकतवर हो गया है और स्त्री कमजोर और नाजुक हो गई है। लेकिन यह एक सम्मोहन है, यह प्राकृतिक नहीं है। ऐसा होना प्राकृतिक नहीं है। तुम एक निश्चित दिशा दे देते हो और फिर हजारों तरह के सम्मोहन प्रचलित हो जाते हैं। भारत में यदि कोई व्यक्ति गरीब अछत के परिवार में जन्म लेता है तो वह शूद्र है, अपनी सारी जिंदगी उसे एक शूद्र की भांति जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। वह अपना व्यवसाय तक नहीं बदल सकता। वह ब्राह्मण नहीं बन सकता। वह सिमटा हुआ है, एक बहुत संकरा छिद्र, एक सुरंग जैसा छिद्र उसको दिया जाता है। उसको इसमें से होकर गुजरना पड़ता है; उसके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। और वह उसी शैली में सोचेगा, वह जीवन के एक निश्चित ढांचे में जीएगा और उसके मन का प्रत्येक संस्कार अपने आप संचालित होता रहता है। यह अपने आपको और कुशलतापूर्वक निर्मित करता रहता है। फिर तुम्हें परमात्मा के बारे में धारणाएं दे दी जाती हैं। सोवियत रूस में तुम्हें धारणा दी जाती है कि कोई परमात्मा नहीं है। स्टैलिन की पुत्री स्वेतलाना ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि बहुत शुरू से ही, निःसंदेह क्योंकि वह स्टैलिन की पुत्री थी, तो उसको बहुत दृढ़तापूर्वक नास्तिक होना सिखाया गया। लेकिन धीरे-धीरे उसे अनुभव होने लगा, 'क्यों? यदि कोई परमात्मा नहीं है तो उसके विरोध में इतना प्रचार क्यों है? क्या है इसका अर्थ? इसमें तो कोई अर्थ नहीं दिखाई पड़ता, यदि परमात्मा है ही नहीं तो बात खत्म। चिंतित क्यों होना? परमात्मा विरोधी प्रचार, साहित्य, यह और वह, इसे सिद्ध करने की कोशिश ही क्यों? यह सारा प्रयास यही प्रदर्शित करता है कि शायद वहां कुछ हो, कुछ है। सकता है वहां।' उसे संदेह हो गया। और जब स्टैलिन का देहांत हुआ तो उसने बगावत कर दी। वह एक धार्मिक व्यक्ति बन गई। लेकिन उसका मन संकीर्ण हो चुका था। वह एक दुर्लभ व्यक्ति रही होगी, क्योंकि सोवियत रूस में आस्तिक होना उतना ही कठिन है जितना कि भारत में नास्तिक होना। इन बातों को सिखाया नहीं जाता, ये बातें मां के रक्त के साथ, मां के दूध के साथ, मां की श्वास के साथ ही सीख ली जाती हैं। तुम्हारे चारों ओर का वात तुम्हें एक सूक्ष्म संस्कारिता के साथ घेरे रहता है। ये बातें सिखाई नहीं जातीं। कोई भी तुम्हें ये बातें विशेषतौर से नहीं सिखा रहा है; तुम उन्हें सीख लेते हो। हिंदू बच्चा जब यहां जन्म लेने के उपरांत आंखें खोलता है और अपने कान खोलता है, तो जो पहली बात वह सुनता है, वह या तो मंत्र होता है या भगवतगीता से कोई बात। यद्यपि वह समझता कुछ भी नहीं है, किंतु पहला प्रभाव संस्कृत का होता है, उस पर पहली छाप किसी धार्मिक ग्रंथ की होती है। फिर वह बड़ा होने लगता है, वह अपनी मां को प्रार्थना करता हुआ देखता है, देवताओं की मूर्तियों, फूलों और धूपबत्ती को देखता है, वह घुटनों के बल घिसटता हुआ वहां पहुंच जाता है, वह उधर निगाह डालता है और देखता है कि क्या हो रहा है। वह देख सकता है कि मां भावविभोर होकर रो रही है, आंसू निकल रहे हैं, और वह बहुत आह्लादित और बहुत प्रसन्न दिखाई पड़ रही है। कुछ अत्यंत महत घट रहा है; वह यह नहीं जान सकता कि यह क्या है, लेकिन कुछ हो रहा है। वह इसे
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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