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मुक्त होने का अभिप्राय है. घर वापस लौट आना। हम दूर निकल गए हैं, हूं. .जरा देखो। शून्यता से बीज आता है, फिर बीज से अंकुर,और फिर एक विशाल वृक्ष, फिर फल और फूल। चीजें कितनी दूर तक जाती हैं। लेकिन फल पुन: पृथ्वी पर वापस गिर पड़ता है; वर्तुल पूरा हुआ। मौन आरंभ है, मौन ही अंत है। शुद्ध आकाश से हमारा आगमन होता है और शुद्ध आकाश में हम चले जाते हैं। यदि वर्तुल पूरा न हो तो तुम्हारा अस्तित्व किसी विशेष बात से ग्रसित रहेगा, जहां पर तुम लगभग जड़ हो जाओगे। और तुम गतिशील न हो पाओगे, और तुम गत्यात्मकता, ऊर्जा, जीवन को खो चुके होते हो।
योग तुमको इतना जीवंत कर देना चाहता है कि तुम जीवन का सारा वर्तुल पूर्ण कर सको, और तुम पुन: ठीक प्रारंभ पर आ सको। अंत और कुछ नहीं वरन ठीक प्रारंभ है। लक्ष्य और कुछ नहीं वरन स्रोत है। ऐसा नहीं है कि हम कोई पहली बार परमात्मा को उपलब्ध करने जा रहे हैं। पहली बात तो यह कि वह हमारे पास था। हमने उसे खोया है। हम उसे पुन: प्राप्त, उपलब्ध कर रहे होंगे। परमात्मा कभी कोई खोज नहीं होता, यह सदैव पुनखोज है। हम उस शांति, मौन और आनंद के गर्भ में रहे थे, लेकिन हम बहुत दूर निकल गए थे।
बहुत दूर निकल जाना भी विकास का ही एक अंग था, क्योंकि यदि तुम अपने घर से कभी बाहर नहीं निकले हो, तुम कभी न जान पाओगे कि घर क्या है। यदि तुम घर से कभी बहुत दूर नहीं गए, तो तुम अपने घर का सौंदर्य, शांति, सुविधा और विश्राम कभी न जान पाओगे। अपने स्वयं के घर आने के लिए व्यक्ति को अनेक दवारों पर दस्तक देनी पड़ती है। अपने आप पर वापस लौटने के लिए व्यक्ति को अनेक चीजों से ठोकर खानी पड़ती है। उचित पथ पर आ पाने के लिए व्यक्ति को
भटकना पड़ता है।
विकास के लिए यह आवश्यक, परम आवश्यक है, किंतु किसी एक स्थान से आसक्त नहीं होना है। लोग आसक्त हैं। कुछ लोग अपने शरीर से, अपनी शारीरिक आदतों से आसक्त हैं। कुछ लोग अपने मन, विचारधाराओं, विचारों, स्वप्नों के ढंग-ढांचों से आसक्त हैं।
कठोपनिषद कहता है. 'विषयों से परे ज्ञानेंद्रिया हैं। ज्ञानेंद्रियों से परे मन है। मन के पार बुद्धि है। बदधि के पार आत्मा है। आत्मा के पार अरूप है। अरूप से परे ब्रह्म है। और ब्रह्म के पार कुछ भी नहीं है।' यही अंत है, शुद्ध चैतन्य।
और इस शुद्ध चैतन्य को अनेक पथों से उपलब्ध किया जा सकता है। असली बात पथ नहीं है। असली बात है साधक की प्रमाणिकता। मेरा जोर इसी पर है।
तुम किसी भी पथ से यात्रा कर सकते हो। यदि तुम निष्ठावान और प्रमाणिक हो तो तुम लक्ष्य पर पहुंचोगे। कुछ पथ कठिन हो सकते हैं,कुछ पथ सरलतर हो सकते हैं, किन्हीं के दोनों ओर हरियाली हो सकती है, कुछ मरुस्थलों से होकर निकल सकते हैं, किन्हीं के चारों ओर सुंदर दृश्यावलियां हो सकती हैं, कुछ ऐसे हो सकते हैं जिनके चारों ओर कोई दृश्यावली न हो, यह दूसरी बात है; लेकिन यदि तुम