SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेंट पीटर ने कहा: तुम एक गलत खयाल में जीती रही हो। संत हो पाने के लिए व्यक्ति को पापी बनना पड़ता है। तुम्हारा 'अभिलेख नितांत कोरा है। अब मेरे पास पूछने के लिए केवल एक ही प्रश्न है: तीस सालों में तुम कहा रही हो? वह बोली : क्या मतलब है आपका? सेंट पीटर ने कहा: तुम पिछले तीस वर्षों से मरी हुई हों - तुम्हें तो यहां पहले ही आ जाना चाहिए था । जी नहीं पाई हो तुम । तुम्हारे तथाकथित संतों को भी इसी बात का सामना करना पड़ेगा। वे जीए ही नहीं। और इसे मैं अधार्मिक कहता हूं। इस अवसर को जो परमात्मा ने तुम्हें दिया है, नकारना अधार्मिकता है। इसे उसकी समग्रता - में न जीना अधार्मिकता है। यदि परमात्मा ने तुम्हें इस भांति बनाया है कि तुम्हारे भीतर पाप उठता है, तो बहुत अधिक चिंता मत लो। इसमें कोई अर्थ होना ही चाहिए; इसे तुम्हारे विकास का एक भाग होना चाहिए। बाइबिल की कहानी सुंदर है। ईश्वर ने अदम से कहा, 'ज्ञान के वृक्ष का फल मत खानाः ।' उसने अदम के साथ एक चाल खेली। यह निश्चित रूप से उसको उकसाने की एक तरकीब थी। उकसाने का तुम इससे बेहतर उपाय नहीं खोज सकते। ईश्वर का बगीचा बहुत विस्तीर्ण था। यदि अदम पर यह बात छोड़ दी गई होती तो वह उस वृक्ष को अब तक न खोज पाया होता। जरा सोचो। ईश्वर का बगीचा इतना विस्तृत है कि अदम, यदि उसको उसकी अपनी अक्ल के सहारे छोड़ दिया गया होता तो उस वृक्ष को अभी तक न खोज पाया होता। ईश्वर को तो यह बात पता ही थी। ईसाई इसे इस प्रकार से नहीं समझाते हैं, लेकिन मुझे पता है कि ईश्वर ने एक चाल खेली थी। उसने अदम को मूर्ख बनाया। अचानक उसने कहा, 'याद रहे, इस वृक्ष का फल कभी मत खाना । यह वृक्ष अदम के मन में एक सतत अटकन बन गया। अब अदम ढंग से सोने में समर्थ न हो पाएगा, रात में वह उस वृक्ष के स्वप्न देखेगा। और जब ईश्वर ने ऐसा कहा है तो इसमें कोई बात अवश्य होना चाहिए और ईश्वर स्वयं इस वृक्ष से फल खाता है ! यह असंभव है। यह उस पिता के समान है जो धूम्रपान करता है और बच्चे से कहे चला जाता है धूम्रपान कभी मत करना, यह बहुत बुरा है, और तुम ऐसा करोगे तो कष्ट उठाओगे।" निःसंदेह अदम को इसे खाना पड़ा, लेकिन दोषी ईश्वर है। उसे दोषी होना पडेगा, क्योंकि वही सारे मामले का आधार है। इसलिए यदि पाप होता है तो उसे अपराधी होना पड़ेगा, यदि पुण्य होता है तो उसी को इसका कारण होना पड़ेगा। सभी कुछ उसका है। परम गहराई में तुम सदैव वहां उसी को पाओगे। और तभी से वह हंस रहा होगा। अदम समझ नहीं सका, थोड़ी मनोवैज्ञानिक समझ की जरूरत थी। यह कोई धार्मिक प्रश्न नहीं है, यह एक मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और ईश्वर भी शांति से बैठ कर कोई प्रतीक्षा नहीं कर रहा था, क्योंकि हो
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy