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________________ एक संन्यासी मेरे पास आया, बहुत भला व्यक्ति है, लेकिन वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था। क्योंकि मैंने उसे सुंदर सा नाम दिया था। मैं तो प्रत्येक को सुंदर-सुंदर नाम देता हूं। उसने इसी को अहंकार का उपाय बना लिया। वह बोला : ओशो, आप तो अदभुत हैं। आपने मुझे इतना सुंदर नाम दिया है-यह तो बिलकुल ठीक-ठीक मुझे ही परिभाषित करता है। तुम्हारे नाम तुम्हारा प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। ये मेरी आशाएं हैं, वास्तविकताएं नहीं। ये मेरे सपने हैं, यथार्थ नहीं हैं। मैंने उस संन्यासी को पुकारा : सत्यानंद- वह आनंद जो सत्य से, साक्षात से आता है। हूं......यह परम है। लेकिन उसने कहा : ओशो, सत्यानंद! आपने ठीक से, बिलकुल ठीक से मुझे समझ लिया है। मैं आपकी समझ से बहुत प्रभावित हूं। अब मैं सचेत हुआ कि यह तो बहुत ही गलत हो गया है। यह एक गलतफहमी बन गया है। मुझे उसको यह नाम नहीं देना चाहिए था। मैं उसे उसकी खुशफहमी से वापस लाना चाहता था। इसीलिए जब कुछ मिनटों के बाद उसने कहना आरंभ किया, 'मैं क्रोध, लोभ यह और वह नहीं चाहता, ये जानवरों जैसी बाते हैं। मैं बोला : 'कायर मत बनो।' अचानक वह क्रोधित हो गया। कायर! आप मुझे कायर कहते हैं? लगा जैसे मुझे पीटने को तत्पर हो रहा हो। वह चिल्लाया-सत्यानंद के बारे में पूरी तरह भूल चुका था और उसने अपना बचाव शुरू कर दिया। आपने मुझे कायर क्यों कहा? मैं कायर तो नहीं। और मैंने उससे कहा : अगर तुम कायर नहीं हो तो तुम बचाव क्यों कर रहे हो? तब तुम सरलता से कह सकते हो आप गलत हैं, या इसकी भी जरूरत नहीं है। तुम कायर नहीं हो तो तुम इसके बारे में फिकर क्यों कर रहे हो? तुम गुस्से से लाल-पीले क्यों हो गए? तुम पूरी आवाज में क्यों चिल्ला रहे हो? तुम इस कदर पागल क्यों हो गए? मैंने अवश्य ही तुम्हारी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। उस समय वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति इस बात के प्रति सचेत हो गया कि वह व्यक्ति किसी बात को छुपा रहा है, और बहुत उग्रतापूर्वक उसका बचाव कर रहा है, किंतु केवल वही इसको नहीं देख सका। यदि तुम एक समूह में लंबे समय तक कार्य करो तो धीरे से तुम्हे सचेत होना ही पड़ेगा कि सारा समूह देख रहा है कि तुम कुछ मूर्खतापूर्ण मूढता का कृत्य कर रहे हो। जो तुम्हारे इच्छाओं के विपरीत है-तुम्हारी अपनी परितृप्ति के विरोध में, तुम्हारे अपने विकास के प्रतिकूल है। तुम एक बीमारी से चिपक रहे हो और तुम कहते रहते हो-मैं इससे छुटकारा पाना चाहता हूं। तुम्हारे अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि तुम गलत कर रहे हो। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि तुम अहंकारी हो-सिवाय तुम्हारे। केवल तुम ही सोचते हो कि तुम एक विनम्र व्यक्ति, एक सरल व्यक्ति हो। हर व्यक्ति तुम्हारी जटिलता को जानता है। हर व्यक्ति तुम्हारे दोहरे मापदंड को जानता है। तुम्हारे अतिरिक्त प्रत्येक, तुम्हारे पागलपन को जानता है। तुम इसका बचाव करते रहते हो। और विनम्रता, व्यवहारिकता और औपचारिकता के कारण समाज में कोई तुम्हें बताएगा भी नहीं। इसलिए समूह सहायक है क्योंकि यह विनम्र नहीं होने वाला है। यह सत्यपूर्ण होने जा रहा है। और जब बहत
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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