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पतंजलि योग सूत्र
(भाग-5)
ओशो
धर्म कोई अहंकार का खेल नहीं है।
तुम कोई अहंकार की खोज में संलग्न नहीं हो, बल्कि तुम तो समग्र को उपलब्ध करने का प्रयास कर रहे हो, और समग्र तभी संभव हो पाता है जब अहंकार के खेलों के सारे प्रकार छोड़ और त्याग दिए जाएं, जब तुम न बचो, बस परमात्मा रहे।
मैं तुम्हें एक प्रसिद्ध सूफी कहानी 'पवित्र छाया' सुनाता हूं। एक बार की बर्ति- है, एक इतना भला फकीर था कि स्वर्ग से देवदूत यह देखने आते थे कि किस प्रकार .ए एक व्यक्ति इतना देवतुल्य भी हो सकता है। यह फकीर अपने दैनिक जीवन में, बिना इस बात को जाने, सदगुणों को इस प्रकार से बिखेरता था जैसे सितारे प्रकाश और फूल सुगंध फैलाते हैं। उसके दिन को दो शब्दों में बताया जा सकता था-बांटों और क्षमा करो-फिर भी ये शब्द कभी उसके होंठों पर नहीं आए। वे उसकी सहज मुस्कान, उसकी दयालुता, सहनशीलता और सेवा से अभिव्यक्त होते थे। देवदूतों में परमात्मा से कहा : प्रभु, उसे चमत्कार कर पाने की भेंट दें।
परमात्मा ने उत्तर दिया, उससे पछो वह क्या चाहता है।
उन्होंने फकीर से पूछा, क्या आप चाहेंगे कि आपके छूने भर से ही रोगी स्वस्थ हो जाए।
नहीं, फकीर ने उत्तर दिया, बल्कि मैं तो चाहंगा परमात्मा ही इसे करें।
क्या आप दोषी आत्माओं को परिवर्तित करना और राह भटके दिलों को सच्चे रास्ते पर लाना पसंद करेंगे?