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लेकिन पहला चरण, हमारा हर बात से तादात्म्य, हमको भटका देता है। फिर जब पहला कदम उठ जाता है, और जब पृथकता की उपेक्षा हो जाती है और हम तादात्म्य की पकड़ में आ जाते हैं, तो फिर इसी ढंग से हमारा पूरा जीवन चलता चला जाता है, क्योंकि एक कदम से ही आगे का दूसरा कदम उठता है, फिर उसी से और और कदम आते हैं, और तब हम इस दलदल में फंसते चले जाते हैं।
मैं
तुम से एक कथा कहना चाहूंगा:
दो युवा मित्र समाज में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। उनमें से युवा कोहेन को एक बहुत ही धनी आदमी के उत्तराधिकारी बनने की आशा थी। इसलिए वह अपने साथ लेवी को लड़की के माता - पिता से मिलाने के लिए ले गया लड़की के माता पिता युवा कोहेन की ओर देखकर मुस्कुराए और बोले, हम जानते हैं तुम कपड़ों का व्यापार करते हो।'
कोहेन ने घबराहट में सिर हिलाते हुए कहा, हां, छोटे पैमाने पर ।'
लेवी ने उसकी पीठ थपथपाई और बोला, यह बहुत विनम्र है, बहुत ही विनम्र है। इसके पास सत्ताईस दुकानें हैं और अभी कई दुकानों के सौदे की बातचीत चल रही है।'
माता-पिता ने पूछा, 'हमें मालूम है कि तुम्हारे पास घर है।'
कोहेन मुस्कुरा दिया, हां, साधारण से कुछ
कमरे हैं।'
युवा लेवी हंसने लगा, ओह, फिर वही सज्जनता, फिर वही विनम्रता ! इसके पास पार्कलेन में पेंथहाऊस
है।'
माता – पिता ने बातचीत जारी रखते हुए कहा, और तुम्हारे पास कार तो होगी ही?'
कोहेन बोला, ही एक अच्छी खासी कार है।'
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' अच्छी-खासी की तो बात ही छोड़ो, लेवी बीच में ही बोला, 'इसके पास तीन रोल्स रायस हैं, और वे सिर्फ शहर में इस्तेमाल करने के लिए हैं।'
इसी बीच कोहेन को छींके आने लगीं।
माता-पिता ने चिंतित होकर पूछा, क्या तुम्हें सर्दी जुकाम है?'
कोहेन ने उत्तर दिया, हाँ, थोड़ा बहुत ।'
लेवी जोर से बोला, ' थोड़ा बहुत नहीं, तपेदिक है तपेदिक ।'