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चारों ओर आग लगी हो तो बिना जाने भागना खतरनाक है। लंगड़ा आदमी चल नहीं सकता था, लेकिन देख सकता था। उन दोनों ने आपस में एक समझौता कर लिया. अंधे आदमी ने लंगड़े आदमी को अपनी पीठ पर सवार कर लिया और लंगड़ा आदमी उसे रास्ता बताने लगा। उनके आपस के समझौते से वे जंगल की आग से बचकर बाहर आ गए।
बदधि भी अपने आप में आधी होती है, अंतर्बोध भी अपने आप में आधा है। अंतर्बोध दौड़ नहीं सकता-वह क्षण मात्र को चमक जाता है। वह भीतर के रहस्योदघाटन का सतत स्रोत नहीं बन सकता है। और बदधि तो हमेशा अंधेरे में ही टटोलती रहती है, अंधेरे में ही खोजती रहती है।
प्रतिभा बुद्धि और इन्टयूशन का जोड़ है और साथ ही दोनों का अतिक्रमण भी है।
अगर कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा बुद्धिमान है, तो वह जीवन में कुछ सुंदर चीजों को चूक जाएगा। वह कविता का आनंद न ले सकेगा, उसे गाने में कोई आनंद नहीं आएगा, वह नृत्य में उत्सव न मना सकेगा। यह सब उसे पागलपन मालूम होगा, उसे अपनी बुद्धि से कुछ कम मालूम पड़ेगा। .वह कहीं अवरुद्ध हो जाएगा, वह स्वयं को रोककर रखेगा, वह कुछ दबा -दबा सा रहेगा। इससे उसके चंद्र को क्षति उठानी पड़ेगी।
अगर कोई व्यक्ति अंतर्बोध में जीता है, तो हो सकता है वह ज्यादा आनंदित हो, लेकिन तब वह दूसरों की अधिक मदद न कर सकेगा, क्योंकि ऐसे व्यक्ति के पास संप्रेषण का अभाव होता है। ऐसा संभव है कि वह स्वयं सुंदर जीवन जीए, लेकिन वह अपने आसपास किसी सुंदर जगत का निर्माण नहीं कर सकेगा, क्योंकि ऐसा केवल बुद्धि के द्वारा ही संभव हो सकता है।
जिस दिन विज्ञान और कला का मिलन हो सकेगा, तभी एक संपूर्ण जगत का निर्माण संभव है। वरना तो बुद्धि अंतर्बोध की निंदा करती रहेगी और अंतर्बोध बुद्धि की निंदा करता रहेगा।
मैंने सुना है एक स्त्री ने एक नई-नई विवाहित हुई स्त्री से पूछा, 'तुम्हारा विवाह हुए कितने वर्ष हो गए हैं?' दूसरी स्त्री ने जवाब दिया, 'बीस विचित्र वर्ष।'
'तुम उन्हें विचित्र क्यों कहती हो?'
वह स्त्री बोली, 'ठहरो, जब तक तुम मेरे पति को देख न लो।'
अंतर्बोध सोचता है कि बुद्धि विचित्र होती है, बुद्धि सोचती है अंतर्बोध विचित्र होता है। पृथक रूप से वे दोनों विचित्र ही हैं। अगर दोनों का सम्मिलन हो जाए, तो उनसे एक सुंदर संगीत का जन्म होता