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है अंतर्बोध, अंतप्रेरणा-अचानक निष्कर्ष पर पहुंच जाना। बुद्धि विधि, प्रणाली और तर्क से संचालित होती है। अंतर्बोध अचानक किसी निष्कर्ष
ता है -उसकी कोई प्रणाली, कोई विधि, कोई नियमबद्ध तर्क नहीं होता है। तुम अंतर्बोध वाले व्यक्ति से यह नहीं पूछ सकते कि ऐसा क्यों है। अंतर्बोध वाले व्यक्ति के पास कोई 'इसलिए' नहीं है। अचानक कोई रहस्य का पर्दा उठता है -जैसे कि कोई बिजली चमक गयी हो और कुछ दिखाई दे गया हो -और फिर वह बिजली की चमक खो जाए और यह समझ ही न आए कि यह क्या हुआ, लेकिन ऐसा हुआ हो और तुमने कुछ देख लिया हो। सभी आदिम समाज अंतर्बोध से ही जीते थे, अधिकांश स्त्रियां -भी अंतर्बोध से ही संचालित होती हैं; बच्चे भी अंतर्बोध से ही जीते हैं; सभी कवि अंतर्बोध से चलते हैं।
प्रतिभा इससे पूर्णतया भिन्न है। पतंजलि के योग-सूत्र के सभी अंग्रेजी अनुवादों में इन्टयूशन शब्द प्रयुक्त हुआ है, लेकिन मैं इसका अनुवाद उस ढंग से न करना चाहूंगा। प्रतिभा का अर्थ है : जब ऊर्जा दोनों के, बुद्धि और अंतर्बोध के पार उठ जाए। ऊर्जा दोनों के पार हो जाए। अंतर्बोध बुद्धि के पार होता है, प्रतिभा उन दोनों के भी पार होती है। अब उसमें कोई तर्क नहीं होता, न ही अकस्मात कोई बिजली चमकती है –सभी कुछ शाश्वत रूप में उदघटित हो जाता है। प्रतिभा से युक्त व्यक्ति सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी हो जाता है। उसके सामने - अतीत, वर्तमान, और भविष्य-सभी कुछ एकसाथ प्रकट हो जाता है।
यही अर्थ है प्रातिभादवा सर्वम् का।
'प्रतिभा के द्वारा समस्त वस्तुओं का बोध मिल जाता है।'
जब ऊर्जा सहस्रार में गतिमान होती है और भीतर के दस लाख सूर्य और दस लाख चंद्र मिल जाते हैं, और जब व्यक्ति आनंद का असीम सागर बन जाता है -जो अनंत है; जब कहीं कोई सीमा नहीं रह जाती है, कोई ओर -छोर नहीं रह जाता है-वही है प्रतिभा। तब व्यक्ति ठीक से देखने और जानने योग्य हो पाता है। तब समय और स्थान की सीमाएं विलीन हो जाती हैं, समय और स्थान की दूरी मिट जाती है।
तो एक मनोविज्ञान सूर्य से संबंधित है, दूसरा मनोविज्ञान चंद्र से संबंधित है। लेकिन एक सना और वास्तविक मनोविज्ञान-मनुष्य का वास्तविक मनोविज्ञान-प्रतिभा से संबंधित होगा। वह पुरुष और स्त्री के बीच बंटा हआ नहीं होगा। वह इनसे ऊपर और इनके पार होगा।
बदधि अंधे व्यक्ति की भांति है. वह हमेशा अंधेरे में ही खोजती रहती है। इसीलिए तो बुदधि इतना तर्क -वितर्क करती है। अंतर्बोध अंधा नहीं होता, लेकिन वह अपंग आदमी की तरह है वह आगे नहीं बढ़ सकता, चल नहीं सकता। प्रतिभा स्वस्थ व्यक्ति की तरह है, उसके सारे अंग स्वस्थ हैं। भारत में एक कथा है कि एक बार एक जंगल में आग लग गयी। उस जंगल में एक अंधा आदमी था और एक लंगड़ा आदमी था। अंधा आदमी देख नहीं सकता था, लंगड़ा आदमी दौड़ नहीं सकता था। लेकिन जब