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________________ तक कि वह सिपाही जरा हिचकिचाया भी नहीं। और फिर उसने दूसरे सिपाही से कहा, 'कूद जाओ!' और वह दूसरा सिपाही भी कूद पड़ा। अब तो उस ब्रिटिश राजदूत की समझ के बाहर हो गया। तभी हिटलर अपनी बात को ठीक से सिद्ध करने के लिए और उसके ऊपर अपना प्रभाव दिखाने के लिए तीसरे सिपाही से बोला, 'कूद जाओ!' लेकिन अब तक ब्रिटिश राजदूत बहुत घबरा चुका था, और चकित भी था। उस ब्रिटिश राजदूत ने जाकर उस तीसरे सिपाही को, जो कि कूदने ही वाला था, पकड़ लिया और कहा, 'ठहरो! तुम्हारी आत्महत्या करने के लिए इतनी तैयारी कैसे है? क्या तुम्हें अपनी जिंदगी खोने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं है?' वह सिपाही बोला, 'मुझे छोड़ दें! आप इसे जिंदगी कहते हैं?' और इतना कहकर वह भी कूद गया। हिटलर स्वयं तो नर्क में ही जीता था और उसने दूसरों के लिए भी नर्क निर्मित कर रखा था- 'क्या आप इसे जिंदगी कहते हैं?' जीवन में अगर प्रेम न हो, तो जीवन में फिर किसी बात की कोई संभावना ही नहीं होती है। जीवन की गहराई का अर्थ है प्रेम, और प्रेम की गहराई का अर्थ है जीवन। और प्रेम श्रदधा है विश्वास है, जोखिम है। मेरे निकट होने का अर्थ है, अत्यधिक प्रेम में होना। क्योंकि मेरे निकट होने का यही एकमात्र ढंग है। मैं यहां किन्हीं सिद्धांतो और शिक्षाओं के प्रचार के लिए नहीं हूं। मैं कोई शिक्षक नहीं हूं। मैं तो जीवन जीने के लिए एक अलग ही दृष्टि का सूत्रपात कर रहा हूं। और यह जोखिम भरा काम है। मैं यह बताने का प्रयास कर रहा हूं कि जिस ढंग से तुम आज तक जीए हो, वह गलत है। जीवन जीने का एक ढंग और भी है –निस्संदेह वह दूसरा ढंग अपरिचित है, भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है। तुमने कभी उसका स्वाद नहीं लिया है। तुमको मेरे ऊपर श्रद्धा और भरोसा करना ही होगा, तुमको मेरे साथ अंधकार में भी चलना होगा। और इन सब बातों के साथ भय भी पकड़ेगा, खतरा भी होगा। और यह बहुत ही पीड़ादायी भी होगा-यही तो है विकास की पूरी की पूरी प्रक्रिया लेकिन उस पीड़ा से गुजरकर ही कोई आनंद की अवस्था तक पहुंच सकता है। केवल पीडा से गुजरकर ही आनंद को पाया जा सकता है। अंतिम प्रश्न: ध्यान के दौरान मैं आपकी शून्यता को पुकारता हूं ताकि वह मुझमें उतर जाए। और मुझे लगता है कि धीरे-धीरे आपकी शून्यता मेरे रोएं-रोएं में समा जाती है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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