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और ऐसा ही मैं निशा से भी कहना चाहूंगा। वह यहां रहती है, पर हमेशा डांवाडोल स्थिति में ही रहती है। यहां रहना है तो पहले निर्णय लो। इस भांति डांवाडोल स्थिति में रहना ठीक नहीं है। यहां रहो या कहीं और रहो, लेकिन जहां भी रहो समग्र होकर रहो अगर तुम यहां रहना चाहती हो तो यहां पर रहो, लेकिन फिर समग्ररूपेण यहां पर रहो तब यही तुम्हारा संपूर्ण संसार बन जाए और यह क्षण तुम्हारे लिए समग्र और शाश्वत हो जाए या फिर यहां पर मत रहो, यहां से चली जाओ, लेकिन इस तरह डांवाडोल स्थिति में मत रहो। कहीं और रहना चाहती हो, वहां रहो, यह भी अच्छा है। तो फिर पूर्णरूप से वहीं रहो।
सवाल यह नहीं है कि तुम कहां हो। सवाल यह है कि क्या तुम पूरिपूर्ण रूप से वहां उपस्थित हो, जहां तुम रहते हो? बेटे हुए, विभक्त मन के साथ मत रहो सभी दिशाओं में एकसाथ मत दौड़ो, वरना तुम विक्षिप्त हो जाओगे ।
समर्पण कर देना ही निर्णय है, सबसे बड़ा निर्णय है। किसी पर श्रद्धा करना भी स्वयं में एक निर्णय है। हालांकि उसमें जोखिम है। कौन जाने? हो सकता है वह आदमी सिर्फ धोखा ही दे रहा हो। जब हम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हैं, तो केवल श्रद्धा और विश्वास ही कर सकते हैं। स्त्री पुरुष के प्रेम में पड़ती है, तो केवल श्रद्धा और विश्वास ही करती है किसे पता है, कौन जानता है? कौन जाने रात्रि में पुरुष हत्या ही कर दे। कौन जानता है? कौन जाने पत्नी तुम्हारा सारा बैंक जाए। लेकिन फिर भी व्यक्ति जोखिम उठाता है, नहीं तो प्रेम संभव ही नहीं है।
बैलेंस लेकर ही भाग
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हिटलर कभी भी किसी स्त्री को अपने कमरे में नहीं सोने देता था। यहां तक कि उसकी गर्ल फ्रेड्स को भी अनुमति नहीं थी रात को हिटलर के कमरे में सोने की। वह उनसे दिन में मिलता था। लेकिन रात को कमरे में वह उनसे कभी भी नहीं मिलता था। क्योंकि वह इतना अधिक भयभीत था। कौन जाने ? कोई स्त्री रात को उसे जहर ही दे दे, रात उसका गला ही दबा दे ।
थोड़ा सोचो ऐसे व्यक्ति की तकलीफ। वह स्त्री पर भी विश्वास नहीं कर सकता था। उसने किस तरह का जीवन गुजारा होगा-नर्क जैसा जीवन । न ही केवल वह स्वयं नर्क में जीया, जो लोग भी उसके आसपास थे वे भी नर्क में ही जीए।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार वह अपने मकान की सातवीं मंजिल पर बैठे हुए किसी ब्रिटिश कूटनीतिज्ञ से बातें कर रहा था। और वह ब्रिटिश सरकार के दूत पर ऐसा प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा था कि उसका विरोध और सामना करने का प्रयत्न व प्रयास करना व्यर्थ है। इसलिए अच्छा है कि समर्पण कर दो। और हिटलर उससे कहने लगा, 'हम तो सारी दुनिया जीत ही लेंगे। कोई भी हमें जीतने से नहीं रोक सकता है। वहां पास में ही एक सिपाही खड़ा हुआ था। केवल उस ब्रिटिश राजदूत को प्रभावित करने के लिए उसने उस सिपाही से कहा, खिड़की से कूद जाओ! सिपाही ने सातवीं मंजिल की उस खिड़की से छलांग लगा दी। ब्रिटिश राजदूत को तो भरोसा ही नहीं आया। यहां