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किसी दिन तुम्हें लौटना ही होगा। अदम बगीचे से बाहर जाता है, जीसस वापस लौट आते हैं। जीसस वापस लौट आए अदम हैं। यही है वापस घर लौट आना, वापस घर लौट आने की यात्रा। जीसस वह अदम हैं, जिन्होंने जान लिया है, जो भूल के प्रति, गलती के प्रति जाग गए हैं, लेकिन अगर प्रारंभ में अदम ही न हो, तो फिर जीसस की भी कोई संभावना नहीं होगी।
एक पादरी छोटे बच्चों को सिखा रहा था कि परमात्मा से प्रार्थना कैसे करना, और कैसे तुम्हारी गलतियां परमात्मा माफ कर सकता है। ऐसा सब सिखाने के पश्चात उस पादरी ने बच्चों से प्रश्न पूछे, उसने पूछा, 'तुमको परमात्मा माफ कर सके इसके लिए सब से जरूरी बात क्या है?' एक छोटा बच्चा खड़ा होकर बोला, 'पाप करना।'
माफी पाने के लिए गलती करना नितांत आवश्यक है। जीसस होने के लिए अदम चाहिए। अदम प्रारंभ है भटकने का, जीसस घर वापस लौट आना है।
लेकिन जीसस अदम से पूर्णतया भिन्न हैं। अदम निर्दोष था। जीसस प्रज्ञावान हैं –निर्दोष होने के साथ-साथ उससे कुछ अधिक भी हैं। वह कुछ अधिक हैं, क्योंकि वे भटकते हुए दूर निकल गए थे। अब वे जीवन के ढंग को और उसकी पूर्णता को अच्छे से जानते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को यही नाटक बार-बार करना पड़ता है। जीसस होने के लिए अदम होना ही पड़ता है। इससे किसी चिंता में और सोच-विचार में मत पड़ जाना। हिम्मत जुटाओ, साहस जुटाओ। डरो मत, भयभीत मत हो। प्रवाहमान रहो, गतिमान रही।
और मैं तुम से कहता हूं कि भटक जाना भी ठीक ही है। बस, एक ही भूल को बार-बार मत दोहराते जाना, एक बार में एक भूल पर्याप्त है, क्योंकि अगर बार-बार तुम एक ही भूल करते हो, उसी भूल को बार-बार दोहराते हो, तो तुम मूड हो। और अगर कभी भी भूल नहीं करते हो, तब तो मूड आदमी से भी गए बीते हो, या कहो कि महामूढ़ हो। जब कभी करो तो नयी-नयी भूलें करो, तो तुम धीरे – धीरे विवेकपूर्ण होते चले जाओगे। और चूंकि विवेक अनुभव के द्वारा ही आता है, उसे पाने का अन्य कोई उपाय भी नहीं है। उसके लिए कोई शार्टकट नहीं है, अन्य कोई उपाय नहीं है।
'मेरा ऐसा विश्वास है कि विकसित होने के लिए मुझे जोखिम उठाने होंगे।'
इस विश्वास को जाने दो, इस विश्वास को बिदा होने दो। यह विश्वास का प्रश्न ही नहीं है। जीवन को थोड़ा ध्यान से देखो, स्वयं के जीवन पर थोड़ा ध्यान दो। इस बात को केवल विश्वास ही नहीं, स्वयं की अंतर्दृष्टि बनने दो। ऐसा नहीं कि मैं कहता है इसीलिए तम विश्वास कर लो, बल्कि समझने की कोशिश करो।
अगर तुम भयभीत और डरे हुए रहोगे, तो तुम हमेशा पंगु ही बने रहोगे और तुम आगे न बढ़ पाओगे। अगर कोई बच्चा चलने से भयभीत है, चलने से डरता है और इस डर के कारण चलने की कोशिश ही