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न करे. और सभी को मालूम है कि वह जब चलना शुरू करेगा तो कई-कई बार गिरेगा-उसे चोट भी लग सकती है, उसे घाव भी हो सकता है, ऐसा होगा भी, लेकिन चलना सीखने का यही एकमात्र तरीका है। और ऐसे ही गिरते -उठते धीरे-धीरे वह संतुलन बनाना सीख जाता है। जो बच्चा चलने की कोशिश कर रहा हो, जो बच्चा चलना सीख रहा हो, उस पर थोड़ा ध्यान देना। पहले तो वह अपने दोनों हाथ और पांव के सहारे चलता है। फिर वह दो पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता है, जो कि बच्चे के लिए बहुत ही जोखिम भरा काम है।
बच्चे का दो पैरों पर खड़े होकर चलने को मैं इसे सबसे बड़ा जोखिम कहता हूं, क्योंकि सारी मनुष्य जाति इसी जोखिम से विकसित हुई है। जानवर चार पैरों के सहारे चलते हैं; केवल मनुष्य ने ही दो पैरों पर खड़े होकर चलने की कोशिश की है। जानवर अधिक सुरक्षापूर्ण ढंग से चलते हैं। मनुष्य प्रारंभ से ही खतरों के प्रति आकर्षित रहा है, आकर्षित ही नहीं अत्याधिक आकर्षित रहा है- इसीलिए उसने दो पैरों के सहारे चलने की कोशिश की।
थोड़ा उस पहले आदमी के बारे में सोचो, जो दो पैरों पर खड़ा हुआ होगा। वह आदमी शायद सर्वाधिक स्वच्छंद, खुले विचारों का और अंधविश्वास और रूढ़ियों के विरुद्ध रहा होगा-सब से बड़ा क्रांतिकारी, विद्रोही रहा होगा-और निश्चित ही उस समय सभी उस के इस अजीब से ढंग पर हंसे होगें। जरा सोचो, जब सभी लोग चार पैरों के सहारे चल रहे थे और अचानक एक आदमी दो पैरों पर खड़ा हो गया होगा पूरा समाज जरूर उस पर हंसा होगा। उन्होंने कहा होगा, 'अरे, यह क्या है? यह तुम क्या कर रहे हो? क्या पागल हो गए हो? आज तक कोई भी तो दो पैरों पर खड़ा होकर नहीं चला है। तुम गिर पड़ोगे, तुम्हारी हड्डी –पसलियां टूट जाएंगी। छोड़ो यह सब, अपने पुराने ढंग पर लौट आओ।' और यह अच्छा ही हुआ कि उस आदमी ने उनकी बात नहीं सुनी। वे लोग उस आदमी पर खूब हंसे होंगे। उन्होंने सभी तरह से कोशिश की होगी कि वह फिर से चारों पैर से चलने लगे, लेकिन उसने उनकी नहीं सुनी और वह दो पैरों पर ही चलता रहा।
वे रूढ़िवादी, दकियानूसी अभी भी वृक्षों पर चढ़े हुए बैठे हैं। वे बंदर, बड़े -बड़े बंदर –वे ही रूढिवादी संकुचित जीव हैं। उनमें जो क्रांतिकारी थे, वे तो मनुष्य बन गए। वे अभी भी वृक्षों पर चढ़े, वृक्षों से चिपके हए बैठे हैं और चारों पैरों के सहारे चल रहे हैं। वे अभी भी यही सोचते होंगे, 'आखिर क्यों यह लोग भटक गए? कौन सा दुर्भाग्य इन पर टूट पड़ा है?'
लेकिन अगर तुम नए के लिए कोशिश करते हो, तो तुरंत उसी क्षण से तुम नए के लिए उपलब्ध हो जाते हो। भयभीत मत होओ। चरैवेति -चरैवेति, चलते जाओ, चलते जाओ। शुरू में छोटे -छोटे कदम उठाओ, छोटे -छोटे निर्णय लो। और खयाल रखो कि हमेशा नए की संभावना होती है, और तुम कुछ गलती भी कर सकते हो। कुछ भूल भी कर सकते हो। और गलत होने में भी गलत है क्या? तुम फिर से लौट आना। और जब तुम वापस लौटकर आओगे, तो तुम और अधिक बुदधिमान और अनुभवी हो जाओगे।