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उसकी मां है। अब यह तो वही पुराना ढंग है, और इस ढंग से कहना तो और भी बेतुका और बेढंगा हो गया।
मैंने एक यहूदी के बारे में सुना है, जो बहुत ही सीधा-सादा और सरल आदमी था। वह यहूदी एक छोटे से शहर में दर्जी का काम करता था। एक दिन वह दर्जी चर्च नहीं गया। और उस दिन यहूदियों का कोई धार्मिक दिवस था, उस दिन वह चर्च नहीं गया। वैसे वह हमेशा चर्च जाया करता था। धीरे -धीरे पूरे शहर में यह अफवाह फैल गयी कि वह दर्जी नास्तिक हो गया है। वह दर्जी नास्तिक हो गया है, इस बात से पूरा शहर चकित था और परेशान भी था। उस छोटे से शहर के लिए यह एक बड़ी घटना थी कि दर्जी नास्तिक हो गया है। उस शहर में ऐसा कभी नहीं हुआ था, कोई कभी नास्तिक नहीं हुआ था। तो शहर के सभी लोग मिलकर दर्जी की दुकान पर गए। उन्होंने दर्जी से पूछा, 'कल धार्मिक दिन था, पूरा शहर चर्च में इकट्ठा हुआ था, कल तुम क्यों नहीं आए?' दर्जी ने कोई जवाब न दिया। वह मौन ही रहा।
दूसरे दिन फिर वे उस दर्जी के पास गए। क्योंकि शहर में किसी भी आदमी का कामकाज में मन नहीं लग रहा था। पूरा शहर दर्जी के बारे में चिंतित था कि वह नास्तिक क्यों हो गया है? फिर उन्होंने कुछ लोगों का एक प्रतिनिधि –मंडल बनाया और शहर का एक मोची, जो थोड़ा लड़ने - झगड़ने में तेज था, उसे नेता बना दिया। वे फिर उस दर्जी की दुकान पर गए। मोची ने आगे बढ़कर दर्जी के पास जाकर पूछा, 'क्या तुम नास्तिक हो गए हो?'
दर्जी ने बड़े ही इत्मीनान से कहा, 'ही, मैं नास्तिक हो गया है।'
उन लोगों को तो जैसे अपने कानों पर भरोसा ही नहीं आया। उन्हें ऐसी आशा न थी कि वह ऐसा जवाब देगा। उन्होंने दर्जी से पूछा, 'तो फिर कल तुम क्यों चुप रहे?'
वह बोला, 'क्या? आखिर तुम लोग कहना क्या चाहते हो! क्या मैं सबथ के दिन यह कहूं कि मैं नास्तिक हो गया हूं?'
अगर तुम नास्तिक भी हो जाओगे, तो भी तुम्हारा पुराना ढर्रा – ढांचा उसी तरह चलता रहता है। मैंने एक नास्तिक के बारे में सुना है जो कि मृत्यु –शय्या पर था, और पादरी को भी बुला लिया गया था। पादरी ने आकर नास्तिक से कहा, 'अब यही समय है कि तुम परमात्मा का स्मरण कर लो।' नास्तिक ने अपनी आंखें खोली और बोला, 'परमात्मा का शुक्र है कि मैं नास्तिक हूं।'
सब कुछ ऐसा ही चलता चला जाता है। तुम वैसे ही बने रहते हो, केवल लेबल बदल जाते हैं। तो मेहरबानी करके अपने अहंकार को समझने की कोशिश करो और इस समझने में महा- अहंकार को निर्मित मत कर लेना। बस, इतना ही जानने -समझने की कोशिश करना कि अहंकार क्या है, क्यों है, और कैसा होता है।