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कुछ
अपनी इस दुविधाग्रस्त स्थिति में मुझे किसी अनाम कवि की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं जो इस तरह से हैं
जब मैं सीढ़ियां चढ़ रहा था
मेरे करीब से वह व्यक्ति गुजरा जो वहां नहीं था
आज वह फिर नहीं आया
मैं सच में आकांक्षा करता हूं कि वह चला जाए।
अहंकार सब से बड़ी दुविधा है। और इसे ठीक से समझ लेना, अन्यथा तुम अनंत
तक पुराने अहंकार के साथ लडूते हुए नया अहंकार निर्मित करते चले जाओगे।
अहंकार है क्या? अहंकार का वास्तविक स्वरूप क्या है? अहंकार स्वयं को ही मालिक मान लेता है। और वह स्वयं में ही भेद खड़े कर लेता है-मालिक और सेवक, श्रेष्ठ और निम्न पापी और पुण्यात्मा, अच्छे और बुरे के भेद खड़े कर लेता है सच तो यह है, अहंकार ही परमात्मा और शैतान के बीच का भेद खड़ा कर लेता है और हम सुंदर, श्रेष्ठ और अच्छे के साथ तो तादात्म्य बनाते चले जाते हैं; और निम्न की निंदा किए चले जाते हैं।
अनंत काल
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अगर भीतर यह विभाजन विद्यमान है, तो जो कुछ भी हम करेंगे उसमें अहंकार मौजूद रहेगा। हम उस विभाजन को गिरा भी सकते हैं, लेकिन उसको गिराने के माध्यम से भी हम अहंकार निर्मित कर ले सकते हैं। फिर इसी तरह से धीरे- धीरे महा - अहंकार तुम्हारे लिए मुसीबतें खड़ी करने लगेगा, क्योंकि सभी तरह के भेद और विभाजन अंततः व्यक्ति को दुख में ले जाते हैं। विभाजन का न होना ही आनंददायी है; और विभाजन का होना ही दुख है। तब फिर वह महा - अहंकार, सुपर ईगो नी समस्याएं, नयी चिंताएं खड़ी करेगा। और फिर तुम अपने महा - अहंकार को गिराओगे और फिर महा से महा अहंकार निर्मित कर लोगे और अनंत -अनंत काल तक तुम यही किए चले जा सकते हो।
और इससे तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं होगा। तुम उस समस्या को बस दूसरी तरफ सरका दोगे। तब तुम समस्या को पीछे धकेलकर समस्या से बचने की कोशिश करते हो ।
मैंने एक ऐसे कैथोलिक के बारे में सुना है जो वर्जिन मेरी, परमात्मा और कैथोलिक धर्म का कट्टर अनुयायी था। फिर एक दिन इन सबसे तंग आकर उसने यह सब छोड़ दिया और वह नास्तिक हो गया। और नास्तिक होकर उसने कहना प्रारंभ कर दिया, कहीं कोई परमात्मा नहीं है, और वर्जिन मेरी