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इसी कारण से अधिकाधिक लोग बाह्य वस्तुओं में उत्सुक हो जाते हैं, क्योंकि बाह्य वस्तुओं को तो बहुत जल्दी और आसानी से हासिल किया जा सकता है, इसी कारण आज व्यक्ति वस्तुओं तक ही सीमित रह गया है। आदमी की आदमी से दूरी बढ़ती जा रही है, वह अपने ही घेरे में सिकुड़कर रह गया है। सच तो यह है, आदमी का उपयोग भी हम वस्तुओं की भाति करते हैं और वस्तुओं से हम इस भांति प्रेम करते हैं जैसे कि वे कोई व्यक्ति हों।
मैं ऐसे लोगों को जानता हूं, जो कहते हैं कि मुझे अपनी कार से प्रेम है। वे अपनी पत्नी के प्रेम के लिए इतने सुनिश्चित नहीं हैं -उन्हें अपनी पत्नी से प्रेम है भी नहीं। वे दावे के साथ नहीं कह सकते कि, 'मैं अपनी पत्नी से प्रेम करता है, लेकिन वह अपनी कार से जरूर प्रेम करते हैं। ऐसे लोग अपनी पत्नी का तो वस्तु की भाति उपयोग करते हैं और कार से प्रेम करते हैं। अब इस तरह के लोगों के साथ पूरी की पूरी बात ही गड़बड़ हो गयी।
वस्तुओं का और चीजों का उपयोग करो, और आदमी से प्रेम करो। लेकिन ध्यान रहे, किसी दूसरे को प्रेम करने के पहले हमें स्वयं प्रेमपूर्ण होना होगा। इसमें समय लगता है, और इसके लिए लंबी तैयारी की आवश्यकता होती है।
इसी कारण जब लोग पतंजलि को पढ़ते हैं, तो भयभीत हो उठते हैं : वह एक बहुत ही लंबी यात्रा मालूम होती है। और वह एक लंबी यात्रा है भी।
मैं कल ही पढ़ रहा था
एक बार अनिद्रा के रोग से पीड़ित एक आदमी को जब डाक्टर ने उसे नींद आने के लिए सस्ती सी दवाई बता दी, तो वह आदमी बहुत ही खुश हो गया।
डाक्टर ने कहा, 'सोने से पहले एक सेब खा लेना।'
'बहुत अच्छा!' रोगी ऐसा कहकर चलने को हुआ। डाक्टर ने उसे सावधान करते हुए कहा, 'ठहरो, बात केवल इतनी ही नहीं है। सेब को एक खास ढंग से खाना है।' अनिद्रा का रोगी बाकी का नुस्खा सुनने को जरा ठहरा। डाक्टर ने कहा 'पहले सेब को काटो। आधा भाग खा लो, फिर अपना कोट और हैट पहनकर बाहर आ जाओ, फिर तीन मील पैदल चलो। जब तुम वापस घर आ जाओ तो शेष आधा भाग भी खा लो।'
धर्म कोई सस्ता मार्ग नहीं है। सस्ते मार्ग की बातों द्वारा मूर्ख मत बन जाना जीवन किन्हीं सस्ते मार्गों को नहीं जानता है। जीवन का मार्ग बहुत लंबा है, और लंबे मार्ग का अपना कुछ अभिप्राय है, अपना कुछ अर्थ है क्योंकि केवल लंबी प्रतीक्षा में ही जीवन का विकास संभव है, और उस प्रतीक्षा में ही जीवन सुंदर ढंग से विकसित होता है।