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उससे बाहर ही रहते हैं। सच्चा, प्रामाणिक और वास्तविक ज्ञान तो केवल तभी संभव है जब हम जानने के अंतर स्रोत तक पहुंच जाएं और तब बड़े से बड़ा चमत्कार घटित होता है और भी बहुत से चमत्कार घटित होते हैं, लेकिन तब सच में बड़े से बड़ा चमत्कार घटित होता है।
सबसे बड़ा चमत्कार तो यही घटित होता है कि जिस क्षण व्यक्ति ज्ञान के स्रोत तक पहुंचता है, व्यक्ति मिट जाता है। जैसे जैसे स्रोत के निकट पहुंचना होता है, उतने ही तुम मिटने लगोगे । जब तुम उस अवस्था में स्थित हो जाते हो, तो तुम नहीं बचते, और फिर भी पहली बार तुम होते हो। अब तुम वैसे ही नहीं रहते जैसा कि तुम स्वयं के बारे में सोचते थे। अब तुम्हारा अहंकार नहीं बचता है। वह यात्रा समाप्त हो चुकी होती है। पहली बार तुम आत्मवान होते हो ।
और जब तुम आत्मवान होते हो, तो बड़े से बड़ा चमत्कार घटित होता है. तुम अपने केंद्र पर लौट आते हो, अपने घर वापस आ जाते हो। उसे ही पतंजलि समाधि कहते हैं। समाधि का अर्थ है सभी समस्याओं का समाधान, सभी प्रश्नों का गिर जाना, सभी चिंताओं का निवारण हो जाना। अब तुम अपने घर वापस लौट आए पूरी तरह से विश्रांत, शिथिल और शांत कुछ भी अब चित को भ्रमित नहीं करता। अब केवल आनंद ही शेष बचता है। अब हर पल, हर क्षण आनंद बन जाता है।
तो पहली तो बात धर्म केवल अंतार्किकता के काटे में फंसकर रह गया। और दूसरी बात तथाकथि धार्मिक व्यक्ति अधिकाधिक अप्रामाणिक और व्यर्थ की बातों में फंसकर रह गए उनके सभी विश्वास उधार के हो कर रह गए और तीसरी बात आज दुनिया में लोग बहुत जल्दी में हैं उनमें धैर्य तो जैसे बचा ही नहीं है। लोग क्यों इतनी जल्दी में हैं कहीं जाना भी नहीं है, फिर भी जल्दी में हैं। लोग बस तेजी से दौड़ते भागते चले जा रहे हैं उनसे यह मत पूछो, कहां जा रहे हैं? क्योंकि उससे वे परेशान और बेचैन हो जाते हैं। उनसे ऐसा मत पूछो। यह पूछना कि तुम इतनी तेजी से कहां जा रहे थे, या तुम कहां जा रहे हो, एक असभ्य और अशिष्ट बात हो जाती है। क्योंकि हम यह जानते ही नहीं हैं कि हम कहा जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं।
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हम सभी लोग जल्दी में हैं, और धर्म एक ऐसा वृक्ष है, जिसके विकास के लिए धैर्य चाहिए। उसके विकास के लिए असीम धैर्य की जरूरत होती है उसके लिए किसी भी प्रकार की जल्दी नहीं चाहिए। अगर किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या अधैर्य किया तो धर्म से चूकना हो जाएगा। वर्तमान आधुनि जीवन में व्यक्ति की दौड़ इतनी क्यों बढ़ गयी है रन यह जल्दबाजी, यह दौड़ कहां से आई है? क्योंकि जल्दबाजी में तो हम ज्यादा से ज्यादा चीजों के साथ खिलवाड़ ही कर सकते हैं, वस्तुओं के साथ क्षण दो क्षण को खेल सकते हैं। लेकिन धर्म की यात्रा के लिए तो असीम धैर्य की और प्रतीक्षा की आवश्यक होती है। उसका विकास असीम धैर्य और प्रतीक्षा में होता है, जल्दी में उसका विकास नहीं होता है। धर्म की यात्रा कोई मौसमी फूल जैसी नहीं है। ऐसा नहीं है कि वह मौसमी फूलों की तरह एक महीने के भीतर वह फूलों से भर जाए धर्म की यात्रा में फूलों को आने में समय लगता है। धर्म तो जीवन का शाश्वत वृक्ष है। उसे किसी भी तरह की जल्दबाजी में नहीं पाया जा सकता है।