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और ही कहे चले जाते हैं। और इसी तरह से लोग कट्टर और मतांध बन जाते हैं। और फिर वे अपनी मतांध धारणाओं के लिए मरने -मारने को भी तैयार हो जाते हैं।
दुनिया में इतनी मतांधता क्यों है? क्योंकि लोग सच में ही जानते नहीं हैं। भीतर से तो वे भयभीत हैं। वे भय भीत हैं - अगर कोई आदमी नहीं कह देता है, तो वह दूसरों के लिए चिंता का कारण बन जाता है। क्योंकि दूसरे लोग भी नहीं कहना तो चाहते हैं, लेकिन वे अपनी नहीं को अभी भी कहीं भीतर छिपाए हुए रहते हैं। अगर कोई नहीं कह देता है तो उनकी नहीं भी जीवंत होने लगती है, और तब वे स्वयं से ही भयभीत होने लगते हैं। इसीलिए वे मतांधता की आड़ में एकदम बंद जीवन जीते हैं, ताकि कोई उनके विचारों को, सिदधांतो को हिला न डाले।
लेकिन जो सच में ही ही को उपलब्ध हो जाता है, उसे ही कहने की भी क्या जरूरत होगी? बुद्ध परमात्मा के विषय में कुछ नहीं कहते हैं ? कोई बात ही नहीं करते हैं परमात्मा की। बुद्ध तो बस हा और नहीं की पूरी की पूरी मूढता पर मुस्कुराते हैं। बुद्ध के पास जीवन की कोई व्याख्या नहीं है। क्योंकि बुद्ध के लिए जीवन परिपूर्ण है -आत्यंतिक रूप से परिपूर्ण और परिशुद्ध है। परमात्मा के बारे में कुछ बताने के लिए किसी विचारधारा की, या किसी सिद्धांत की आवश्यकता नहीं होती है। परमात्मा को सुनने के लिए तो 'बस मौन और शांत होना पर्याप्त है। हम परमात्मा में हो सकते हैं, उसे महसूस कर सकते हैं, उसमें जी सकते हैं। लेकिन हमेशा स्मरण रहे. जो लोग बहुत ज्यादा ही से जड़े होते हैं, वे जरूर कहीं न कहीं अपने भीतर नहीं को दबा रहे होते हैं।
दूसरा प्रश्न पूछा है अमिताभ ने :
हरमन हेस के सिद्धार्थ ने बुद्ध से कुछ इस प्रकार कहा है :
'ओ श्रेष्ठतम असीम प्रतिष्ठा के स्वामी निस्संदिग्ध रूप से मैं आपकी देशनाको पर श्रद्धा करता हूं आपके दवारा बताई हई हर बात एकदम स्पष्ट और स्वयंसिदध है आप संसार को एक समग्र अट श्रृंखला के रूप में बताते हैं जो पूर्णरूपेण सुसंगत है और बड़े और छोटे सभी को एक ही धारा- प्रवाह में आबद्ध किए हुए है एक क्षण को भी मुझे आपके बुद्ध होने के प्रति संदेह नहीं होता है आप उस परमावस्था को उपलब्ध हो गए हैं जहां पहुंचने के लिए न जाने कितने लोग प्रयासरत हैं। आपने स्वयं के असाध्य श्रम और खोज से बुद्धत्व को हासिल किया है। आपने किन्हीं भी धर्म- देशनाओं द्वारा कुछ भी नहीं सीखा है और इसीलिए मैं सोचता हूं ओ श्रेष्ठतम असीम प्रतिष्ठा के स्वामी कि कोई भी व्यक्ति धर्म- देशनाओं द्वारा मुक्ति नहीं पा सकता है आप अपनी देशनाओं के माध्यम से किसी को यह नहीं बता सकते कि आपको संबोधि के क्षण में क्या घटित हआ- वह रूपांतरण जिसे