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बुद्ध ने स्वयं अनुभव किया वह गुह्यतम रहस्य क्या है- जिसे लाखों- लाखों लोगों में सिर्फ बुद्ध ने अनुभव किया।
'इसीलिए मुझे अपने ही ढंग से चलते जाना है- किसी दूसरे और बेहतर सदगुरु की तलाश नहीं करनी है क्योंकि कोई और बेहतर है ही नहीं पहुंचना तो अकेले ही है- या मर जाना है।'
भगवान इस पर आप कुछ कहेंगे?
हरमन हेस की सिद्धार्थ बहुत ही विरल पुस्तकों में से एक है, वह पुस्तक उसकी अंतर्तम गहराई से
आयी है। हरमन हेस सिद्धार्थ से ज्यादा सुंदर और मूल्यवान रत्न कभी न खोज पाया, जैसे वह रत्न तो उसमें विकसित ही हो रहा था। वह इससे अधिक ऊंचाई पर नहीं जा सकता था। सिद्धार्थ, हेस की पराकाष्ठा है।
सिद्धार्थ बुद्ध से कहता है, 'आप जो कुछ कहते हैं सच है। इससे विपरीत हो ही कैसे सकता है?
आपने वह सब समझा दिया है जिसे पहले कभी नहीं समझाया गया था, आपने सभी कुछ स्पष्ट कर दिया है। आप बड़े से बड़े सदगुरु हैं। लेकिन आपने संबोधि स्वयं के असाध्य श्रम से ही उपलब्ध की है। आप कभी किसी के शिष्य नहीं बने। आपने किसी का अनुसरण नहीं किया, आपने अकेले ही खोज की। आपने अकेले ही यात्रा करके संबोधि उपलब्ध की है, आपने किसी का अनुसरण नहीं किया।'
'मुझे आपके पास से चले जाना चाहिए, सिद्धार्थ गौतम बुद्ध से कहता है, 'आप से ज्यादा बड़े सदगुरु को खोजने के लिए नहीं, क्योंकि आपसे बड़ा सदगुरु तो कोई है ही नहीं। बल्कि इसलिए कि सत्य की खोज मुझे स्वयं ही करनी है। केवल आपकी इस देशना के साथ मैं सहमत हूं....।'
क्योंकि बुद्ध की यह देशना है अप्प दीपो भव! अपने दीए स्वयं बनो! किसी का अनुसरण मत करो, खोजो, अन्वेषण करो, लेकिन किसी का अनुसरण मत करो, किसी के पीछे मत चलो।'
मैं इससे सहमत' हूं, 'सिद्धार्थ ने कहा, 'इसलिए मुझे जाना ही होगा।'
सिद्धार्थ उदास है। बुद्ध को छोड़कर जाना उसके लिए बड़ा कठिन रहा होगा; लेकिन उसे जाना ही होगा-क्योंकि उसे सत्य को खोजना है, सत्य को जानना है, या फिर मर जाना है। उसे अपना मार्ग खोजना है।
इस संबंध में मेरी अपनी दृष्टि क्या है?