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तुम्हारे तीनों ही कारण ठीक हैं और यह शुभ है कि तुम इनके प्रति सजग होते जा रहे हो।
आठवां प्रश्न :
आपने मेरे लिए इतना कुछ किया है। आपने कभी नहीं कहा कि मै ऐसी बनूं या वैसी बनूं। मैं जैसी भी हूं आपने मुझे स्वीकार किया है। आप मेरी पीड़ा को कम करते जा रहे हैं और मुझे आनंद का मार्ग दिखाते जा रहे हैं? अनुग्रह प्रकट करने के लिए मैं आपके लिए क्या कर सकती हैं।
पूछा है आमिदा ने। यही प्रश्न कभी न कभी बहुतों के हृदय में उठेगा। प्रश्न सुंदर है, लेकिन इससे
परेशान मत हो जाना। मेरे लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। मेरे लिए तो बस तुम्हारा होना काफी है, तुम्हारा होना काफी है, कुछ भी करना नहीं है। कुछ करने को है भी नहीं। बस तुम अपने अस्तित्व को उपलब्ध हो जाओ, यह मेरे लिए सबसे आनंद की बात है।
ऐसा नहीं है कि मैं अभी प्रसन्न नहीं हूं, लेकिन जैसे किसी नए गुलाब के पौधे में फूल खिलने पर माली और बगीचा प्रसन्नता से खिल उठते हैं, ऐसे ही जब तुम में से कोई अपने स्वरूप को उपलब्ध होता है और उसका हृदय कमल खिल जाता है, तो मैं भी आह्लादित हो जाता है।
जैसे कोई चित्रकार चित्र बनाता है, उस चित्र को बनाने के लिए बहुत मेहनत करता है, ऐसे ही मैं तुम पर कार्य करता हूं। तुम ही मेरी कविताएं हो, तुम ही मेरे गुलाब हो, तुम ही मेरे चित्र हो। उस चित्र का होना ही काफी होता है, फिर किसी और चीज की जरूरत नहीं होती है।
नौवां प्रश्न:
कृपया संगीत और ध्यान के विषय में कुछ कहें!