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जब मैं कहता हूं 'प्रेम' तो तुम उसका अर्थ 'कामवासना' के रूप में ले सकते हो। थोड़ा ध्यान से इसे देखना। समय-समय पर अपनी व्याख्याओं की जांच-पड़ताल करते रहना, क्योंकि वे ही जाल हैं - और तब तुम मुझ में बहुत से विरोधाभासों को पाओगे, क्योंकि मैं तो मिट चुका हूं : अब तो तुम्हीं मुझ में प्रतिबिंबित हो रहे हो। तुम्हारे भीतर बहुत से विरोधाभास हैं। तुम उलझन की स्थिति में हो। तुम्हारे भीतर बहुत से मन हैं, और उनके द्वारा तुम कई-कई ढंग से चीजों की व्याख्या किए चले जाते हो,
और फिर तुम्हारी अपनी ही व्याख्याओं के कारण, तुम्हारे अपने ही अर्थों के कारण तुम्हें विरोधाभास दिखाई देने लगता है।
मुझे सुनो। सुनने से भी ज्यादा मेरे साथ यहां पर उठो -बैठो, मेरे साथ जीओ। फिर धीरे - धीरे तुम्हारे सारे विरोधाभास समाप्त हो जाएंगे।
तीसरा प्रश्न:
एक सुंदर कथा है जो देवतीर्थ ने भेजी है।
भगवान, अंकल डडले की बात मुझे वेस्ट वजानिया की एक और कहानी की याद दिलाती है। कहानी इस प्रकार है कि एक अजनबी जब वजार्निया पहुंचा तो वह किसी जगह को खोज रहा था!
और जब वह खोज रहा था तो खोजते- खोजते वह जिस मार्ग से आया था वह उस मार्ग को पूरी तरह से भूल गया। तब वह खोजते- खोजते मार्ग में एक वृद्ध किसान के पास रुका और उससे मार्ग के बारे में पूछने लगा
वृद्ध व्यक्ति ने जवाब दिया 'उत्तर की ओर तीन मील तक जाना वहां पुल पर से दायीं ओर चले जाना लकड़ी का बाड़ा आए तो बायीं तरफ मुड़ जाना... ओह नहीं इस तरह से न खोज पाओगे।'
उसने फिर से समझाने का प्रयत्न किया' इसी रास्ते पर ही चार मील तक चलते चले जाना खाड़ी के मोड़ के पास जो चेस्टनट का पेडू है वहां से दायीं ओर मुड़ जाना उसी सड़क पर आगे दो मील तक चलते चले जाना फिर जहां पर रुकने का संकेत है वहां से बायीं ओर मुड़ जाना. ओह नहीं- नहीं फिर से गड़बड हो गयी।
एक बार फिर कोशिश करते हुए वृद्ध व्यक्ति कहने लगा पश्चिम की ओर सीधे चले जाना जब तक कि तुम यूबर्ज जनरल स्टोर तक न पहुंच जाओ फिर पुल से दायीं ओर पांच मील तक चले जाना