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जो कुछ भी मैं कहूंगा उसे वे अपने ही ढंग से सुनेंगे और अपने ही ढंग से समझेंगे-फिर वे उसकी व्याख्या अपने ही ढंग से करते हैं।
तब फिर बात वही नहीं रह जाती है जो मैंने कही होती है, उसका अर्थ कुछ और ही हो जाता है। तब उसमें उनकी अपनी व्याख्याएं प्रवेश कर जाती हैं। और चूंकि उनकी अपनी व्याख्याएं होती हैं, तो उन व्याख्याओं के कारण पूरी की पूरी बात ही बदल जाती है। मैंने जो कहा होता है, उसका अर्थ ही बदल जाता है और तब फिर समस्याएं उत्पन्न होती हैं। लेकिन वे समस्याएं उनकी अपनी ही बनायी हई होती हैं।
मैंने एक कथा सुनी है:
पैट्रिक परंपरागत ढंग से अपने पापों को स्वीकार करने के लिए गया वहां जाकर वह पादरी से बोला,'फादर, मैं अपने पड़ोसी से प्रेम करता है।'
पादरी ने कहा, यह तो अच्छी बात है। मैं यह जानकर अत्यंत खुश हैं कि इस चर्च के धार्मिक अनुष्ठानों ने तुम्हें लाभ पहुंचाया है और ईश्वर की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया है। अच्छे और भले काम करते रहो। यही तो जीसस का संदेश है-कि अपने पड़ोसी को भी उसी तरह प्रेम करो जैसे कि स्वयं को करते हो।'
पैट्रिक घर गय
दर और अच्छे वस्त्र पहनकर पड़ोसी के घर गया। पड़ोसी के घर जाकर पैट्रिक ने घंटी बजायी और पूछा,'सब ठीक तो है न?'
एक स्त्री ने दरवाजा खोला और बोली,' अल्वर्ट बाहर गए हुए हैं, दोपहर का समय है और दिन का तेज प्रकाश है। ऐसे में कोई तुम्हें यहां आते हुए देख सकता है।'
पैट्रिक बोला,' ओह, सब ठीक है, मैंने फादर बीन से विशेष छूट ले ली है।'
अपने पड़ोसी को उसी तरह प्रेम करो जैसे कि स्वयं को करते हो,' जब जीसस ऐसा कहते हैं तो उनकी बात का बिलकुल ही अलग अर्थ होता है। जब पैट्रिक उसकी व्याख्या करता है, तो उस बात का मतलब बिलकुल ही अलग हो जाता है। अपने पड़ोसी से प्रेम करो -यह एक प्रार्थना है, यह एक ध्यान है, यह एक ढंग है होने का, लेकिन जब कोई साधारण मन यह बात सुनता है तो उसका रंग -रूप कुछ अलग ही हो जाता है। तब प्रेम कामवासना बन जाता है, प्रार्थना आसक्ति बन जाती है। और मन बहत चालाक है. वह कोई भी आधार-कोई भी आधार, कहीं से भी उपलब्ध हो -मन अपने आखिरी समय तक अपनी व्याख्याएं करता चला जाता है।
जब तुम मुझे सुनो, तो जागरूक रहना। तुम अपने ढंग से मेरी व्याख्या कर सकते हो। जब मैं कहता हूं 'स्वतंत्रता' तो तुम 'खुली छूट' की भांति इसका अर्थ कर सकते हो। थोड़ा ध्यानपूर्वक इसे देखना।