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चाहिए-समान अनुपात। पुरुषों और स्त्रियों की संख्या सदा बराबर होती है। किसी को लड़कियां ही लड़कियां पैदा होती हैं, किसी को लड़के ही लड़के पैदा होते हैं, लेकिन यदि तुम सारी पृथ्वी को देखो तो स्त्रियों की कुल संख्या करीब उतनी ही रहती है जितनी पुरुषों की।
जब बच्चे पैदा होते हैं, तो सौ लड़कियों के पीछे एक सौ पंद्रह लड़के पैदा होते हैं। क्योंकि प्रकृति जानती है कि लड़के कमजोर होते हैं; थोड़े मर ही जाएंगे। तो विवाह की उम्र तक उनकी संख्या बराबर हो जाएगी। लड़कियां ज्यादा जिददी होती हैं; ज्यादा मजबूत होती हैं। लड़कियां ज्यादा शक्तिशाली होती हैं। वे कम बीमार पड़ती हैं। उनके पास ज्यादा सहनशक्ति होती है बहुत सी बातों के लिए; वे परेशानियां झेल सकती हैं। यह तो पुरुष का अहंकार है जो कहता रहता है, 'हम ज्यादा शक्तिशाली हैं।' शारीरिक शक्ति पुरुष में ज्यादा हो सकती है; लेकिन सहनशक्ति ज्यादा नहीं होती है क्योंकि एक सौ पंद्रह में से पंद्रह लड़के मर जाते हैं और चौदह वर्ष की अवस्था तक संख्या बराबर हो जाती है : सौ लड़के, सौ लड़कियां।
प्रकृति किसी न किसी तरह संतुलन करती रहती है। जब युद्ध होता है, तो युद्ध के बाद ज्यादा लड़के पैदा होते हैं, लड़कियां कम पैदा होती हैं, क्योंकि युद्ध में ज्यादा पुरुष मरते हैं। यह एक बड़ी अदभुत घटना मालूम पड़ती है-अविश्वसनीय! कैसे होता है यह? युद्ध में दूसरा महायुद्ध हुआ, पहला महायुद्ध हुआ-दोनों युद्धों में देखा गया और पाया गया कि युद्ध के बाद ज्यादा लड़के पैदा हुए, उनकी संख्या बढ़ गई, और लड़कियां कम पैदा हुईं। क्योंकि युद्ध में पुरुष ज्यादा मरते हैं और उनकी कमी को पूरा करना होता है।
यही बात आध्यात्मिक जागरण में भी है. उतनी ही स्त्रियां बुद्धत्व को उपलब्ध होती हैं, जितने पुरुष। संतुलन बना रहता है। लेकिन स्त्रियों को ज्यादा कोई जानता नहीं, क्योंकि वे कभी गुरु नहीं बनतीं; या यदि कभी-कभी वे गुरु बन भी जाती हैं, तो यह बहुत दुर्लभ घटना होती है।
आज इतना ही।