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डांवाडोल रहता है; हजारों विचार चलते रहते हैं, और इससे पहले कि तुम्हें पता चले, तुम कहीं और चले गए होते हो : दिवास्वप्न शुरू हो जाता है। जब भी तुम किसी चीज पर एकाग्र होना चाहते हो, करीब-करीब असंभव हो जाता है। लेकिन कारण यही है कि तुम शरीर से बहुत ज्यादा बंधे हुए हो। यदि तुम शरीर के माध्यम से देखते हो, तो एकाग्रता संभव नहीं है। यदि तुम शरीर के पार से देखते हो, तो एकाग्रता बड़ी आसान बात होती है।
ऐसा हुआ, विवेकानंद एक बड़े विद्वान के साथ ठहरे हुए थे। उसका नाम था देवसेन, बहुत बड़ा विद्वान, जिसने संस्कृत शास्त्रों का पश्चिमी भाषाओं में अनुवाद किया। देवसेन उपनिषदों के अनुवाद में संलग्न था और वह सर्वाधिक गहरे अनुवादकों में से एक था। एक नई पुस्तक प्रकाशित हुई थी। विवेकानंद ने पूछा, 'क्या मैं इसे देख सकता हूं? क्या मैं इसे पढ़ने के लिए ले सकता हूं?' देवसेन ने कहा, 'हां-हां, जरूर ले सकते हो। मैंने इसे बिलकुल नहीं पढ़ा है।'
कोई आधे घंटे बाद विवेकानंद ने पुस्तक लौटा दी। देवसेन को तो भरोसा न हुआ; इतनी बड़ी पुस्तक पढ़ने के लिए तो कम से कम एक सप्ताह चाहिए; और अगर तुम उसे ठीक से पढ़ना चाहते हो, तब तो और भी समय चाहिए। और यदि तुम सच में ही समझना चाहते हो उसको, कठिन है पुस्तक, तब तो और भी समय चाहिए। उसने कहा, 'क्या आपने पूरा पढ़ लिया इसे? क्या आपने सच में ही पढ़ा इसे? या कि बस यं ही इधर-उधर निगाह डाली है?'
विवेकानंद ने कहा, 'मैंने भलीभांति अध्ययन किया है इसका।'
देवसेन ने कहा, 'मैं विश्वास नहीं कर सकता। आप मुझ पर एक कृपा करें। मुझे पढ़ने दें यह पुस्तक,
और फिर मैं आपसे पुस्तक के संबंध में कुछ प्रश्न पूलूंगा।' देवसेन ने सात दिन तक पुस्तक पढ़ी, उसका अध्ययन किया; और फिर उसने कुछ प्रश्न पूछे और विवेकानंद ने एकदम ठीक उत्तर दिए, जैसे कि वे उस पुस्तक को जीवन भर. पढ़ते रहे हों। देवसेन ने लिखा है अपने संस्मरणों में : मेरे लिए असंभव थी यह बात और मैंने पूछा कि 'कैसे संभव है यह?' तो विवेकानंद ने कहा, 'जब तुम शरीर द्वारा अध्ययन करते हो तो एकाग्रता संभव नहीं है। जब तुम शरीर में बंधे नहीं होते, तो तुम किताब से सीधे-सीधे जुड़ते हो तुम्हारी चेतना सीधे-सीधे स्पर्श करती है। तुम्हारे और किताबें के बीच कोई बाधा नहीं होता: तब आधा घंटा भी पर्याप्त होता है। तुम उसका अभिप्राय, उसका सार आत्मसात कर लेते हो।'
यह बिलकल ऐसे ही है : जब कोई छोटा बच्चा पढता है वह बड़े शब्द नहीं पढ़ सकता है। उसे शब्दों को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ना पड़ता है। वह पूरा वाक्य नहीं पढ़ सकता है। जब तुम पढ़ते हो तो तुम पूरा वाक्य पढ़ते हो। अगर तुम तेज पढ़ने वाले हो, तो तुम पूरा पैराग्राफ पढ़ सकते हों-झलक भर-और पढ़ जाते हो उसे।