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और योगी. योगी वह है जो शरीर के पार चला गया है, वह जीता है शरीर के पार-वह आनंदित होता है। रोगी कभी आनंदित नहीं होता, भोगी कभी-कभार आनंदित होता है, योगी सदा आनंदित होता है। आनंद उसका स्वभाव हो जाता है, बिना किसी प्रकट कारण के वह आनंदित रहता है।
तुम्हारी अवस्था एकदम उलटी है : बिना किसी प्रकट कारण के तुम दुखी रहते हो। यदि कोई तुम से पूछे, 'क्यों तुम इतने दुखी हो?' तुम अपने कंधे बिचका दोगे। तुम नहीं जानते कि क्यों! तुमने इसे मान ही लिया है कि यही मेरे जीवन का ढंग है-दुखी रहना। असल में यदि तुम किसी दुखी व्यक्ति को देखते हो तो तुम कभी नहीं पूछते, 'क्यों तुम दुखी हो?' तुम स्वीकार कर लेते हो। जब तुम किसी व्यक्ति को प्रसन्न, बहुत प्रसन्न देखते हो, तो तुम पूछते हो, 'बात क्या है? क्यों तुम इतने प्रसन्न हो? क्या हुआ है?' दुख स्वीकृत है, दुखी होना स्वीकृत है। प्रसन्नता इतनी दुर्लभ हो गई है, इतनी असाधारण, कि ऐसा लगता है कि यह सच हो ही नहीं सकती।
ऐसा होता है, लोग मेरे पास आते हैं. जब वे ध्यान शुरू करते हैं, और यदि वे त्वरा से ध्यान में उतरते हैं, तो चीजें बदलने लगती हैं। जब वे आए थे, तब वे दुखी थे, उदास थे; फिर कोई झरना फूट पड़ता है-आनंद बरसने लगता है। वे विश्वास नहीं कर पाते इस पर। वे दौड़े आते हैं मेरे पास और वे कहते हैं, 'क्या हो गया है? अचानक मैं बहुत आनंदित अनुभव कर रहा हूं। क्या मैं कल्पना कर रहा हूं?' वे विश्वास नहीं कर पाते कि यह बात सच हो सकती है। मन कहता है, 'तुम जरूर कल्पना कर रहे होओगे। तुम, इतने दुखी व्यक्ति, और तुम आनंदित हो? असंभव है।' वे आते हैं मेरे पास और वे कहते हैं, 'क्या हम कल्पना कर रहे हैं, या आपने सम्मोहित कर दिया है हमको?'
जब वे दुखी थे तब उन्होंने कभी नहीं सोचा कि शायद किसी ने उन्हें सम्मोहित कर दिया है। जब वे दुखी थे तब उन्होंने कभी नहीं सोचा कि शायद यह उनकी कल्पना है। लेकिन जब वे प्रसन्नता अनुभव करते हैं –प्रसन्नता इतनी दुर्लभ घटना हो गई है, इतनी अविश्वसनीय हो गई है कि वे पूछते हैं, क्या यह सच है पर?'
अंग्रेजी में तुम्हारे पास एक मुहावरा है, 'टू गुड टु बी टू'; तुम्हारे पास ऐसा कोई मुहावरा नहीं है-'टू बैड टु बी टू'। दूसरे मुहावरे को ज्यादा प्रचलित होना चाहिए। लेकिन 'गुड' पर तो विश्वास ही नहीं आता है; इसीलिए यह मुहावरा है : 'टू गुड टु बी टू'। इस मुहावरे को पूरी तरह भुला देना चाहिए। जब कोई कुछ बुरी बात कहे तो तुम्हें कहना चाहिए, 'टू बैड टु बी टू' इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। तुमने जरूर कल्पना कर ली होगी। लेकिन नहीं, ऐसा नहीं है। दुख तो बहुत स्वाभाविक मालूम पड़ता है; आनंद बहुत अस्वाभाविक लगता है।
'मानसिक शुद्धता से उदित होती है-प्रफुल्लता, एकाग्रता की शक्ति..।' लोग शरीर से जुड़े रह कर ही एकाग्रता पाने की कोशिश करते हैं; तब एकाग्रता बड़ी कठिन बात हो जाती है, करीब-करीब असंभव ही हो जाती है। तुम एक क्षण को भी एकाग्र नहीं हो सकते। मन