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तो एक संभावना है, अगर शरीर कोई दखलंदाजी नहीं कर रहा है, तो तुम पूरी किताब पढ़ सकते हो एक नजर भर डालते हुए। और यदि तुम शरीर से पढ़ते हो, तो तुम भूल सकते हो। अगर तुम शरीर को एक ओर हटा कर पढ़ते हो, तो फिर उसे स्मरण रखने की कोई जरूरत नहीं होती; तुम उसको नहीं भूलोगे - क्योंकि तुमने समझ लिया होता है उसे ।
शुद्ध शरीर वाले, शुद्ध चेतना वाले, शुद्धता से आपूरित व्यक्ति में एकाग्रता की शक्ति उदित होती है।
'.. इंद्रियों पर नियंत्रण...।'
ये परिणाम हैं, ध्यान रहे । उनका अभ्यास नहीं किया जा सकता है; यदि तुम अभ्यास करते हो तो तुम कभी उन्हें उपलब्ध नहीं होओगे। वह सब अपने आप होता है। यदि आधारभूत कारण हटा दिया जाता है, अगर तुम शरीर के साथ तादात्म्य नहीं बनाए रहते, तब घटता है इंद्रियों पर नियंत्रण । तब वे तुम्हारे नियंत्रण में होती हैं तब यदि तुम सोचना चाहते हो, तो तुम सोचते हो, अगर तुम नहीं सोचना चाहते हो, तो तुम मन से कह देते हो, 'ठहरो' । यह एक यांत्रिक प्रक्रिया है जिसे तुम चला सकते हो और बंद कर सकते हो।
लेकिन कुशलता चाहिए। और यदि तुम पूरी तरह कुशल नहीं हो और तुम मालिक होने की कोशिश करते हो, तो तुम अपने लिए ज्यादा उलझन और मुसीबत पैदा कर लोगे और तुम बार-बार हारोगे, और इंद्रियां ही मालिक बनी रहेंगी। उन्हें जीतने का ढंग यह नहीं है। उन्हें जीतने का ढंग यह है कि शरीर के साथ तुम अपना तादात्म्य हटा लो।
तुम्हें जानना है कि तुम शरीर नहीं हो; और फिर तुम्हें जानना है कि तुम मन नहीं हो। तुम्हें उन सब का साक्षी होना है जो जो तुम्हें घेरे हुए है। शरीर है पहला वर्तुल फिर है मन दूसरा वर्तुल फिर है हृदय-तीसरा वर्तुल। और फिर इन तीनों वर्तुलों के पीछे है केंद्र - तुम। यदि तुम स्वयं में केंद्रित हो, तो ये तीनों पर्तें तुम्हारा अनुसरण करेंगी। यदि तुम स्वयं में केंद्रित नहीं हो, तो तुम्हें उनका अनुसरण करना पड़ेगा।
इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्म-दर्शन की योग्यता । "
और यही है ढंग योग्य होने का, स्वयं को जानने की पात्रता हासिल करने का हर कोई आत्म-बोध को उपलब्ध होना चाहता है, लेकिन कोई अनुशासन से नहीं गुजरना चाहता कोई पकना नहीं चाहता। हर कोई चाहता है कि कोई चमत्कार हो जाए ।
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लोग आते हैं मेरे पास और वे कहते हैं, क्या आप हमें आशीर्वाद नहीं दे सकते, ताकि हम आत्म जानी हो जाएं?