________________ संस्कत में दो शब्द हैं 'मैं' के लिए- 'अहंकार' और' अस्मिता '| इनका अनुवाद करना कठिन है। अहंकार 'मैं' का गलत बोध है। जो' नहीं' कहने से चला आता है। 'अस्मिता' सम्यक बोध है 'मैं' का, जो 'ही' कहने से आता है। दोनों 'मैं' हैं। एक अशुद्ध है। 'नहीं' अशुद्धता है। तुम नकारते हो, नष्ट करते हो। 'नहीं' ध्वंसात्मक है; यह एक बहुत सूक्ष्म विध्वंस है। इसका प्रयोग हरगिज मत करना। जितना तुमसे हो सके इसे गिरा देना। जब कभी तुम सजग होओ इसका उपयोग मत करना। आस-पास का कोई मार्ग ढूंढने की कोशिश करो। अगर तुम्हें इसे कहना भी पड़े तो इस ढंग से कहो कि इसकी प्रतीति हां की भांति हो। धीरे- धीरे तुम्हारा ताल-मेल बैठ जायेगा, और हां द्वारा बहुत शुद्धता तुम्हारी ओर आती तुम अनुभव करोगे। फिर है' अस्मिता '| 'अस्मिता' अहकारविहीन अहं है। किसी के विरुद्ध 'मैं' होने की अनुभूति नहीं होती। यह मात्र अनुभव करना है स्वयं का, स्वयं को किसी के विरुद्ध रखे बिना। यह तो तुम्हारे समग्र अकेलेपन को अनुभव करना है। और समग्र अकेलापन एक शुद्धतम अवस्था है। जब हम कहते हैं, 'मैं हूं तो 'मैं' अहंकार है।' हूं है अस्मिता। वहां बस अनुभूति है हूं-पन की। इसके साथ कोई 'मैं नहीं जुड़ा। मात्र अस्तित्व को, होने को अनुभव करना। 'ही' सुंदर है, 'नहीं' असुंदर है। असंप्रज्ञात समाधि में, सारी मानसिक क्रिया की समाप्ति होती है और मन केवल अप्रकट संस्कारों को धारण किये रहता है। संप्रज्ञात समाधि है पहला चरण। इसमें अंतर्निहित है सम्यक तर्क, सम्यक विचारणा, आनंद की अवस्था, आनंद की झलक और हूं-पन की अनुभूति-शुद्ध सरल अस्तित्व, जिसमें कोई अहंकार न हो। यह संप्रज्ञात समाधि की ओर ले जाता है। पहला चरण है शुद्धता; दूसरा है तिरोहित होना। शुद्धतम भी अशुद्ध है क्योंकि यह है। 'मैं' असत है, 'हूं भी असत है। यह 'मैं' से बेहतर है, लेकिन उच्चतर संभावना वहां होती है जब 'हूं भी तिरोहित हो जाता है केवल' अहंकार' ही नहीं लेकिन' अस्मिता'भी। तुम अशुद्ध हो; फिर तुम शुद्ध बन जाते हो। लेकिन यदि तुम अनुभव करने लगो, 'मैं शुद्ध हूं तो शुद्धता स्वयं अशुद्धता बन चुकी होती है। उसे भी तिरोहित होना है। शुद्धता का तिरोहित होना असंप्रज्ञात समाधि है; अशुद्धता का तिरोहित होना संप्रज्ञात समाधि है। शुद्धता का तिरोहित होना असंप्रज्ञात है। शुद्धता का भी तिरोहित हो जाना असंप्रज्ञात समाधि है। पहली अवस्था में विचार तिरोहित हो जाते हैं। दूसरी अवस्था में विचारणा, विचार करना भी तिरोहित हो जाता है। पहली अवस्था में कांटे छंट जाते हैं। दूसरी अवस्था में फूल भी तिरोहित हो