________________ देना, अहंकार 'नहीं' पर पलता है। जब कभी तुम कहते हो 'नहीं ', अहंकार उठ खडा होता है। जब कभी तुम 'हां' कहते हो, अहंकार नहीं उठ सकता क्योंकि अहंकार संघर्ष चाहता है,अहंकार चाहता है चुनौती। अहंकार स्वयं को किसी के विरुद्ध रख देना चाहता है; किसी चीज के विरुद्ध। यह अकेला नहीं बना रह सकता है, इसे दवैत चाहिए। एक अहंकारी हमेशा संघर्ष की तलाश में रहता हैकिसी के साथ, किसी चीज के साथ, किसी परिस्थिति के साथ का संघर्ष। वह हमेशा किसी चीज को खोज रहा है न कहने को, जीतने को, उसे विजित करने को। अहंकार हिंसक होता है। और 'नहीं' एक सूक्ष्मतम हिंसा है। जब तुम साधारण चीजों के प्रति भी नहीं कहते हो, वहां भी अहंकार उठ खडा होता है। एक छोटा बच्चा मां से कहता है, 'क्या मैं बाहर खेलने जा सकता हूं?' और वह कहती है 'नहीं।' कुछ बड़ी उलझन न थी,लेकिन जब मां कहती है 'नहीं', तो वह अनुभव करती है कि वह कुछ है। तुम रेलवे स्टेशन पर जाते हो और तुम टिकट के लिए पूछते हो। क्लर्क तुम्हारी तरफ बिलकुल नहीं देखता। वह काम करता जाता है, चाहे कोई काम न भी हो। वह कह रहा है, 'नहीं।' 'ठहरो।' वह अनुभव करता है कि वह कुछ है, वह कोई है। इसलिए दफ्तरों में हर कहीं, तुम 'नहीं 'सुनोगे।' हां' बहुत कम है, बहुत दुर्लभ। एक साधारण क्लर्क किसी को 'नहीं' कह सकता है, तुम कौन हो इसका महत्व नहीं। वह शक्तिशाली महसूस करता है। नहीं कह देना तुम्हें ताकत की अनुभूति देता है। इसे याद रखना। जब तक यह बिलकुल आवश्यक ही न हो, हरगिज नहीं मत कहना, अगर यह बिलकुल आवश्यक भी हो तो इसे इतने स्वीकाराअक ढंग से कहो कि अहंकार खड़ा न हो। तुम ऐसा कह सकते हो। नहीं भी इस ढंग से कहा जा सकता है कि यह हां की भांति लगता है। तुम इस ढंग से ही कह सकते हो कि यह 'नहीं' की भांति लगता है। यह बात भाव-भंगिमा पर निर्भर करती है; अभिवृत्ति पर निर्भर करती है। इसे खयाल में लेना-खोजियों को इसे सतत याद रखना पड़ता है कि तुम्हें सतत हां की सुवास में रहना होता है। आस्थावान ऐसा ही होता है; वह ही कहता है। जब नहीं की भी आवश्यकता हो, वह कहता है हां। वह नहीं देखता कि जीवन में कोई प्रतिरोध है। वह स्वीकार करता है। वह अपने शरीर के प्रति हां कहता है, वह मन के प्रति हां कहता है, प्रत्येक के प्रति हां कहता है, वह संपूर्ण अस्तित्व के प्रति हां कहता है। जब तुम निरपेक्ष ही कहते हो बिना किन्हीं शर्तों के, तब परम खिलावट घटित होती है। तब अचानक अहंकार गिर जाता है; वह खड़ा नहीं रह सकता। इसे नकार के सहारे चाहिए होते हैं। नकारात्मक दृष्टिकोण अहंकार निर्मित करता है। विधायक दृष्टिकोण के साथ अहंकार गिर जाता है, और तब अस्तित्व शुद्ध होता है।