________________ जाते हैं। जब 'नहीं' मिट जाता है पहली अवस्था में तो 'हां' बना रहता है। दूसरी अवस्था में 'हां' भी मिट जाता है क्योंकि 'हां भी 'नहीं' के साथ संबंधित है। तुम 'हां' को कैसे बनाये रख सकते हो बिना 'नहीं' के? वे साथ-साथ हैं; तुम उन्हें अलग नहीं कर सकते। अगर 'नहीं'तिरोहित हो जाता है, तो तुम 'हां' कैसे कह सकते हो? गहन तल पर 'हां' नहीं को 'नहीं' कह रहा है। यह निषेध है निषेध का। एक सूक्ष्म 'नहीं' बना रहता है। जब तुम कहते हो 'हां', तो क्या कर रहे हो तुम? तुम नहीं तो नहीं कह रहे हो; लेकिन भीतर नहीं खड़ा है। तुम इसे बाहर नहीं ला रहे; यह अप्रकट है। तुम्हारी 'हां' कोई अर्थ नहीं रख सकती अगर तुम्हारे भीतर कोई 'नहीं' न हो। क्या अर्थ होगा इसका? यह अर्थहीन होगी।'हां' का तो अर्थ बनता है केवल नहीं के कारण। नहीं का अर्थ बनता है हां के कारण। वे दवैत दै। संप्रज्ञात समाधि में 'नहीं गिर जाता है। वह सब जो गलत है, गिर जाता है। असंप्रज्ञात समाधि में, 'हां' गिर चुका होता है। सब जो सम्यक है, सब जो शुद्ध है, वह भी गिर जाता है। संप्रज्ञात समाधि में तुम गिरा देते हो शैतान को; असंप्रज्ञात समाधि में तुम ईश्वर को भी छोड़ देते हो। क्योंकि बिना शैतान के भगवान कैसे अस्तित्व रख सकता है? वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सारी क्रिया समाप्त हो जाती है।'हां' भी एक क्रिया है और क्रिया एक तनाव है। कुछ हुआ जा रहा है। यह सुंदर भी हो सकता है, किंतु फिर भी कुछ हो तो रहा है। और एक समय के बाद सुंदर भी असुंदर हो जाता है। एक समय के बाद तुम फूलों से भी ऊब जाते हो। कुछ समय के बाद क्रिया, बहुत सूक्ष्म और शुद्ध हो तो भी तुम्हें एक तनाव देती है; यह एक चिंता बन जाती है। 'असंप्रज्ञात समाधि में सारी मानसिक क्रिया की समाप्ति होती है और मन केवल अप्रकट संस्कारों को धारण किये रहता है। किंत फिर भी, यही ध्येय नहीं है। क्योंकि क्या होगा उन सब प्रभावों का, विचारों का जिन्हें तुमने अतीत में इकट्ठा किया है? अनेक-अनेक जन्मों को तुमने जीया है, अभिनीत किया है, प्रतिक्रिया की है। तमने बहत सारी चीजें की हैं, बहत-सी नहीं की हैं। क्या होगा उनका? चेतन मन शुद्ध हो चुका है; चेतन मन ने शुद्धता की किया को भी गिरा दिया है। किंतु अचेतन बड़ा है और वहां तुम सारे बीजों को वहन करते हो, सारी रूपरेखाओं को। वे तुम्हारे भीतर हैं। वृक्ष मिट चुका है; तुम संपूर्णतया काट चुके हो वृक्ष को। पर बीज जो गिर चुके हैं, वे धरती पर पड़े हुए हैं। वे फूटेंगे, जब उनका मौसम आयेगा। तुम्हारी एक और जिंदगी होगी; तुम फिर पैदा होओगे। निस्संदेह तुम्हारी गुणवत्ता अब भिन्न होगी, किंतु तुम फिर पैदा होओगे क्योंकि वे बीज अब भी जले नहीं हैं।