________________
बाना सत्य के ही इर्द-गिर्द रचा गया है। सत्य मनुष्य के जीवन का मूलाधार है। ससद् भवनो से लेकर पुलिस थानो तक, महाकाय उद्योगो से लेकर परचूनी की मामूली दुकानो तक और विश्व-विद्यालयो से लेकर टाटपट्टी वाली शालाओ तक एक ही आवाज गूंजती है कि-"मैं जो कुछ कहूँगा सच-सच कहूँगा और सच के अलावा कुछ नही कहूंगा।" यहा तक कि हमने अपने राष्ट्रीय एम्ब्लेम (राज्यचिह्न) मे 'सत्यमेव जयते सत्य को ही विजय हो लिखा है । शासकीय कागज के हर सिरे पर चमकती हुई स्याही से हम लिखते हैं-सत्यमेव जयते । मुलम्मा __पर जीवन पुस्तक बन्द है । आपकी मै नही पढ सकता, आप मेरी नही पढ सकते । भीतर झाकना मना है-नो एडमिशन। आपको देखना ही हो तो महज आवरण देख सकते है। तरह-तरह के आवरण । एक से एक लुभावने, आकर्षक, लेटेस्ट डिजाइन वाले । पुस्तक भीतर से बन्द है उसे पढकर क्या करियेगा? आवरण मे बहुत सुविधा है। कई बार बदलिये, जब जिस तरह के आवरण की जरूरत हो लगा लीजिये। साधु समाज मे जाना हो जरा सादा आवरण चढा कर जाइये, शादी-विवाह का मौका हो तो जरा भडकीला आवरण लीजिये । व्यापार-व्यवसाय, राजनीति, धर्म-साधना, मौज-शौक, गप्पा-गोष्ठी, स्वजन-परिजन, कोर्ट-कचहरी, बीसियो काम मनुष्य के साथ लगे है-हर मौके का अलग-अलग आवरण । जहा जिम तरह की जरूरत हो मनुष्य वैसा दीखना चाहता है। महज पुस्तक मे ऐसी लोच कहा | उसमे तो आपकी करनी के और कथनी के अक्स ज्यो के त्यो उतरते चले आते है। अब अपने काम के ऐसे एक्सरे कौन उजागर करना चाहेगा? इसलिए मनुष्य ने इसी में अपनी भलाई मान ली है कि वह अपनी जीवन पुस्तक बन्द ही रखे और उसे पेश करने के आवरण जुटाने में अपनी शक्ति लगाये। खूबी यह है कि जिसके पास
जीवन मे?
३९