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बेचारा पुण्य !
ढाई अक्षर का छोटा सा शब्द 'पुण्य' अब ऐसी जमात का सिरमौर है, जो वैभव में डूबी हुई है। वह उस बारात का दूल्हा है, जिसके बाराती हैं-जमीन-जायदाद, धन-सम्पदा, पद-सत्ता और बेशुमार वस्तुएँ । मेरे बाबा उसे ही पुण्यात्मा कहते थे जिसके साथ अपार सम्पदा, सुविधाएँ
और हुकूमत जुडी हो । यो वे अपने जीवन मे सरल, सादे, परिश्रमी, सयमी और बिना आडम्बर के थे। स्वार्थ से अधिक उन्हें परहित की चिन्ता थी, फिर भी वे पुण्यात्मा तो उसे ही मानते थे जिसके पास ससार को खरीदने की ताकत है। कई पीढ़ियो से लगातार ऐमाही सोचने की हमारी आदत बन गयी है। घर मे दाम बढ़ जाना भाग्योदय है, अभाव दुर्भाग्य की निशानी है। हमारे सत, धर्म-गुरु, विचारक, तीर्थकर और पैगम्बर कुछ दूसरी ही बात कह गये। उन्होने बहुत खोज की, साधना की और मनुष्य को भीतर से देखा-परखा तथा वे इस नतीजे पर आये कि आत्मा के साथ यदि कुछ जोडा जा सकता है तो वह धन, सत्ता, लोभ, स्वार्थ, हिमा, द्वेष
महावीर