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आख से कभी ओझल भी नही हुआ है। उसकी सारी मिथॉलाजी-पोराणिक कथाएँ -- मुक्ति की गाथाएं हैं। किसने क्या करके मुक्ति पाई इसका रोचक वर्णन उनमे है । यह प्रतीक है मनुष्य की निष्ठा का । भटक रहा है वह बाहर बाहर, पर जानता है कि मुक्ति के लिए उसे आत्मबोध की सीढ़ी पर पैर रखना होगा। हमारे सारे धर्म-शास्त्र आत्मा और परमात्मा के बढिया मेटाफिजिक्स - - अध्यात्म ग्रन्थ हैं। सब के पास आत्मतत्त्व की फिलॉसफी है -- अलग-अलग जरूर है— जैन फिलॉसॉफी, हिन्दू फिलॉसफी, क्रिश्चियन फिलॉसॉफी, इस्लाम फिलॉसफी आदि-आदि । लेकिन मंजिल सबकी एक ही है कि मनुष्य को अपना आत्मधर्म समझना -उस पर चलना है। ऐसा किये बिना उसके मुक्ति द्वार नही खुलने के । तत्त्व- मीमासा के जटिल गणित भी हैं जो द्रव्य, पुद्गल, परमाणु, कर्म, कर्म गति, पुण्य, पाप, निर्जरा, सवर आदि की पारिभाषिक शब्दावली के साथ आपके सामने ससार, नर्क और स्वर्ग का व्याप प्रस्तुत करते हैं । सब धर्म वालो के पास अपने अपने धर्म-सस्थान हैं—मंदिर, मठ, गिरजाघर, मसजिद, उपासरे, आश्रम आदि-आदि । अनन्त हैं- एक-एक बस्ती मे दस-दस बीस-बीस । फिर है आराधना के अलग-अलग प्रकार । भजन-कीर्तन से लेकर मौन एकान्त ध्यान-धारणा । व्रत-उपवास, प्रदोष, खाने-पीने, रहने-सहने के बेशुमार नियम - उपनियम । जिससे जो सध
ये । यज्ञ, अनुष्ठान, पूजाएँ, मत्र-तत्र, जाप की अनेक विधिया । इन सब के शास्त्र रचे हुए हैं और तज्ञ लोग हैं जो आपसे यह सारी कवायत शास्त्र सम्मत करवा लेते है । एक और दायरा भी है-दान-धर्म के विधि-विधान | यहा दो और वहा लो । बैके ससार का लेन-देन निबटा देती है और दान-धर्म के विधि-विधान आपका पारलौकिक लेन-देन निपटाने का दावा करते है ।
यह सब इतना है कि मनुष्य की हर सास के साथ जुड गया है। जीवन मे ?
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