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१. सुत्तपिटक, जो निम्नलिखित पॉच निकायो मे विभक्त है(१) दीघनिकाय, (२) मज्झिमनिकाय, (३) सयुत्तनिकाय, (४) अगुत्तरनिकाय, (५) खुद्दकनिकाय खुद्दकनिकाय मे १५ ग्रन्थ है(१) खुद्दक पाठ, (२) धम्मपद, (३) उदान, (४) इतिवृत्तक, (५) सुत्तनिपात, (६) विमान वत्यु, (७) पेत वत्यु, (८) थेर-गाथा, (९) थेरीगाथा, (१०) जातक, (११) निहेस, (१२) पटिसम्भिदामग्ग, (१३) अपदान, (१४) वुद्ववस, (१५) चरियापिटक। २ विनयपिटक, निम्नलिखित भागो मे विभक्त है(१) महावग्ग, (२) चुल्ल वग्ग, (३) पाराजिक, (४) पाचित्तिय, (५) परिवार। ३. अभिधम्म पिटक, मे निम्नलिखित सात ग्रन्थ है(१) धम्म सगनी, (२) विभग, (३) धातुकथा, (४) पुग्गलपञ्जति, (५) कथावत्यु, (९) यमक, (७) पट्ठान। से मिल सकता है। बर्मा के मॉडले नगर में तो सारा का सारा त्रिपिटक कई सौ शिला-लेखो पर अकित है। रोमन-लिपि मे पालि-टेक्स्ट सोसाइटी की ओर से छप चुका है। देवनागरी अक्षरो मे शीघ्र छपेगा, ऐसी आशा और प्रयत्न है। __ कई सज्जन प्राय पूछते हैं कि एक सस्कृतज्ञ के लिये पालि कितनी कठिन होगी? कितने दिन मे सीखी जा सकती है ? इसका उत्तर यही है कि किसी भी भाषा का अभ्यास यूं तो अपने अध्यवसाय पर ही निर्भर है लेकिन सामान्यतया पालि में किसी भी सस्कृतज्ञ की गति शीघ्र ही हो सकती है। पालि सस्कृत से उतनी दूर नहीं है जितनी प्राकृत । प्राकृत में तो व्यञ्जन का स्वर भी हो जाता है लेकिन पालि में नही होता जैसे शकुन्तला का प्राकृत में सउन्दले हो जायगा लेकिन पालि में होगा केवल सकुन्तला।