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भूमिका वुद्ध धर्म के सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्यो-सूत्र-पिटक, विनय-पिटक तथा अभिधर्म-पिटक मे भगवान् बुद्ध तथा उनके शिष्यो के जो उपदेश सगृहीत है वह सभी परम्परा से बुद्ध-वचन माने जाते है। सूत्र-पिटक मे साधारण वात चीत के ढग पर दिए गये उपदेश है, विनय-पिटक मे भिक्षुओ के नियम-उपनियम है और अभिधर्म-पिटक मे है बुद्ध-दर्शन अपने पारिभापिक शब्दो मे।
पालि वा मागधी भापा के यह ग्रन्थ अपनी अर्थ-कथाओ (टीकाओ) सहित लगभग तीन महाभारत के बराबर है। वौद्ध अनुश्रुति के अनुसार बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद की तीन सगीतियो (=भिक्षु सम्मेलनो) मे इस वाडमय का सगायन हुआ और प्रथम शताब्दी मे राजा वट्टगामणी के समय में सिहल में लेख-बद्ध किया गया।
विद्वानो ने त्रिपिटक की भाषा और महाराज अशोक के शिलालेखो की भापा पर तुलनात्मक विचार किया है। उनमे से कुछ का कहना है कि अशोक के शिलालेखो की मागधी मे प्रथमा विभक्ति मे 'ए' आता है और त्रिपिटक की पालि मे 'ओ'। फिर अशोक के शिलालेखो मे 'र' की जगह 'ल' का प्रयोग है। इसी प्रकार अशोक के शिलालेखो मे 'श' का प्रयोग भी है, जव कि त्रिपिटक की पालि मे केवल 'स' ही है। इन कुछ वातो को लेकर कोई कोई विद्वान् कहते है कि मागधी भापा और चीज है, और पालि विल्कुल और। ___इस प्रकार उनकी दृष्टि मे त्रिपिटक का बुद्ध-वचन होना सन्दिग्ध है।
लेकिन यदि वे इस बात पर विचार करे कि एक दो अक्षरो के प्रयोग का भेद तो पालि के सिहल मे जाकर लिखे जाने से वहाँ सिहालियो की अपनी