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वृहत् पूजा संग्रह
॥ राग गोडी ॥ कपल कोमरुवनं, चन्दनं चर्चितं, सुगंधगधे अधिवासिया ए हां रे अइ० । कनकपंडित हये, लालपल्लव शुचि वान जुग कंत अतिवासिया ए ॥१॥ जिनप उत्तम अंगे, सुविधि शक्रो यथा, करिय पहिरावणी ढोइये ए हां रे अ०। पाप लूहण अंग लूहणुं देवने, वस्त्रयुग पूज मल धोइये ए हां रे अ० ॥२॥
॥राग वैराडी ।। देवदुष्य जुग पूजा बन्यो हे जगतगुरु, देव दुष हर अब इतनो मागु। तुहिज सब ही हित तुहिज मुणतिदाता, तिण नमि नमि प्रभुजीके चरणे लागु ॥ दे० ॥१॥ कहे साधु त्रीजी पूजा केवल दसण नाण, देवदुष्य मिश देहु उत्तम वागुं। श्रवण अंजली पुट सुगुण अमृत पीतां, सविराडि दुख संशय धुर में भांगु ॥ दे० २ ॥ .
॥ चतुर्थ वासक्षेप पूजा ॥
॥ राग गोडी दोहा॥ पूज चतुर्थी इण परे, सुमति वधारे वास । कुमति कुगति दूरे हरे, दहे मोह दल पास ।।