________________
सतरहभेदी-पूजा ,
' ॥राग सारंग ॥ हांहो रे देवा बावन चन्दन घसि कुमकुमा चूरण विधि विरचे वासु ए । हां ।। कुसुम चरण चन्दन मृगमदा, कंकोल तणो अधिवासु ए ॥ हां ॥ १ ॥ वास दशोदिशि वासते, पूजे जिन अग उन गु ए ॥ हां० ॥ लाछि भुवन अधिवासियो, अनुगामिकी सरस अभंगु ए ॥२॥
॥ राग गौडी तथा पूर्वी ॥ । । मेरे प्रभुजीकी पूजा आणद मेले ॥ मे० ॥ वास भुवन मोयो सब , लोए, सपदा मेलेकी ॥ पूजा० १॥ सतर प्रकारी पूजा, विजय देवा तत्ता थेई । अप्रमत्त गुण तोरा चरण सेवाकी ॥ पू० ॥ २॥ कुंकुम चन्दनवासे, पूजीये जिनराज ताई। चतुर्गति दुख गौरी चतुर्थी धनकी ॥ पू० ॥३॥ ., , पंचम पुष्पारोहण पूजा ॥
॥ दोहा ॥ मन विकसे तिम विकमतां, पुष्प अनेक प्रकार । प्रभुपूजा ए पंचमी, पंचमि गति दातारं ॥
॥ राग कामोद ॥ चम्पक केतकी मालती हा रे अ० ए, कुंद किरण