________________
[ २५ 3 आणीयापी एम पर्यपे, अम्ह निस्तरिया आज । पुत्र तमारो धणोय हमारो, तारण तरण जहाज ॥३॥ मात जतन करी राखजो एहने, तुम सुत अम्ह आधार । मुरपति भक्ति सहित नन्दीसर, करे जिन भक्ति उदार ॥४॥ निप-निय कप्प गया सहुनिर्जर, कहता प्रभु गुण सार । दीक्षा-केरल-ज्ञान-कल्याणक, इच्छा चित्त मझार ॥५॥ खरतरगच्छ जिन आणारगी, "राजसागर उनमाय" । 'ज्ञानधर्म' 'दीपचंद' सुपाठक, सुगुरु तणे सुपसाय । "देवचन्द" जिन भक्ते गायो, जन्म महोत्सव छन्द ॥ बोध वीज अंकुरो उलस्यो, सघ सफल आनन्द ॥ ७ ॥
॥सोहम मुरपति० ॥ || ढाल १० ॥ फलश ॥ [राग-बिलावल या माड अथवा यथा रुचि.] इम पूजा भगते करो, आतम हितकाज । आत० । वजिये विभाव निजमावर्मा, रमता शिवराज । रमतौशिव०११ काल अनन्त जे हुआ, होगे जैद जिणन्द । होशेजह० ॥ संपई सीमन्धर प्रभु, फेनल नाग दिनन्द । केवल नाण०२॥