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॥ गाहा ॥ तब ईशाण सुरिन्दो, सकळ पाणेई करिहु सुप्पसाओ । तुम्ह अंके महणाहो, खिणमित्त अम्ह अप्पेह ॥ ता सक्किन्दो पभणई, साहम्मियवच्छलम्मि बहुलाहो । आणाईचं तेणं गिण्हह, होउ कयत्था भो ॥१॥ इतना कहकर प्रभु के चरणों पर थोड़ी सी जलधारा देवे ।
॥ ढाल ६ ॥
[राग प्रभात भैरव ] (प्रभाती) सोहम सुरपति वृषभरूपकरी, न्हवण करे प्रभु अंग। करिय विलेपन पुष्पमाल ठवि, वर आभरण अभंग ॥ टेर । तब सुरवर बहु जय जय रख करी, नच्चे धरी आणन्द । मोक्ष मार्ग सास्थपति पाम्यो, भाजिसू हिव भवफन्द ॥१॥ कोड़' बत्तीस सोवन्न उवारी, वाजन्ते वरनाद । सुरपति संघ अमर श्रीप्रभु ने, जननी ने सुप्रसाद ॥२॥
१ - यहाँ शक्ति के अनुसार द्रव्य नाणा लेकर, प्रभु के ऊपर
(घोल) उतार (न्यौछावर ) कर, प्रक्षालित जल पात्र में डालें।