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वृहत् पूजा-संग्रह परमातम, आप अकास अनाम | अध्यातम भावे आराधो, सकुसुम पूज प्रमाण रे॥ पू० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ चञ्चत्सुपञ्चवर वर्ण विराजिभिः ।
मंत्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा।
|| चतुर्थ धूप पूजा ॥
॥दोहा॥ अगर तगर चन्दन सरस, कस्तूरी घनसार । सेल्हारस वर कुन्दरू, करो धूप विस्तार ॥२॥ धूप धूम उँचा चढ़े, बढ़े सुयश वर भाव । प्रभु पद पूजा धूपकी, ऊरध गति स्वभाव ॥२॥
(तर्ज-तुम्हें नाथ नैया तिरानी पड़ेगी ) धूप से पूजा जो कर पाये, उर्ध्व गति वह सहज उपाये ॥ टेर | काल अनादि कारण योगे, श्री प्रभु दर्शन भाव वियोगे। थावर दशक पद जीव कमाये ॥धप० ॥१॥ पृथ्वी पानी आग पवन में, और वनस्पती के जीवन में। थावर पद सदगुरु समक्षावें ॥ धूप० ॥ २ ॥ सूक्ष्म नाम कर्मोदय हेतु, लोक भरा बहु दुःख निकेतु। ज्ञानी जन उपदेश सुनावे ॥ धूप० ॥ ३ ॥ निज पर्याप्ति पूरी न
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