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नाम कर्म निवारण पूजा
४४७ (तर्ज-भीनासर स्वामी अन्तर्यामी तारो पारसनाथ-माढ) ___ पूजो फूल विकासो, की की फांसी, काटे श्री भगवान । मिले पद अविनाशी, सहज विलासी, पूजक हो भगवान ॥ टेर ॥ प्रभु पूजा से पुण्योदय हो, होता है सुख सात । अन्य सवल को जो आपाते, प्रकृति हो परावात रे। पू० ॥ १ ॥ श्वासोच्छवास हो जीवन हेतु, आतप ताप प्रधान । सूर्य विमाने धरज पूजे, शाश्वत श्री भगवान २॥ पु० ॥ २॥ उत्तर वैक्रिय वारा मण्डल, में होता है उद्योत । न लघु न गुरु अगुरु लघु, शरीर हो सुख श्रोत रे। पू० ॥ ३॥ जो तीर्थङ्कर नाम कमा, त्रिभुवन जन सुख खाण । अगोपांग व्यवस्था करता, नाम करम निर्माण रे॥ ३० ॥ ४ ॥ अपने ही अगों से पीडित, होना है उपधात । आठों ये प्रत्येक वताये, नाम करम विख्यात रे ।। पू० ॥ ५ ॥ त्रस बादर पर्याप्ता प्रत्येक, स्थिर शुभ सुभग सुनाम | सुस्वर आदेय यश कीरति ये, उस दशका अमिराम रे । पू० ॥ ६॥ उस दशके से उल्टा होता, स्थावर दशक प्रमाण ! नाम करम क्षय होता आखिर, चौदश में गुणठाण रे । पू० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र प्रभु