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वृहत् पूजा-संग्रह
सड़सठ होती नाम करम की, प्रकृति समास विचारा || प्र० || ४ || विस्तारे छत्तीस मिलाते, होती एक सो तीन । आसक्ति तज नाम करस पर, विजयी होते प्रवीन ॥ प्र० ॥ ५ ॥ जीव विपाकी बस थावर त्रिक, सुभग दुभग चउ जानो । श्वास जाति गति तीर्थ विहायो गति अन्तर्गति ठानी ||प्र० ||६|| नाम थुवोदयी प्रकृति बारह, तनु चउ अरु उपघाता । साधारण प्रत्येक उद्योत, आतप युत परघाता ॥ प्र० ॥ ७ ॥ नाम कर्म की ये छत्तीसों, प्रकृति पुद्गल पाका । हरि कवीन्द्र समझ समझ कर ले लो शिवपुर
नाका ॥ प्र० ॥ ८ ॥
|| काव्यम् || पापोपताप शमनाय महद्गुणाय० । मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने नाम कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।
॥ तृतीय पुष्प पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
कुसुम कली खिलती रहे, प्रभु चरणों को पाय । त्यों पूजन जन आतसा, अन्तर्गत खिल जाय ॥ १ ॥ कुसुम कली सुविकास में, सौरभ सुगुण विलास | परमातम परसंग में, अध्यातम गुण खास ॥२॥
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