________________
४३७
आयुष्य कर्म निवारण पूजा भव टालो रे । प्रभुपद दर्शन वन्दन पूजन, शुभगति पालो रे ॥ पू० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् || सम्पूर्णसिद्धि शिवमार्ग सुदर्शनाय० । मन्त्र - ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने "आयुष्य कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा ।
॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
सक्षत गुण अक्षत करण, पूजो अक्षत धार । अक्षत गुण होंगे प्रकट, सक्षत हो संसार ॥१॥ भाव द्रव्य से होत हैं, विना द्रव्य नो भाव | होते हैं बाजार में, द्रव्य देखकर भाव ॥२॥ (तर्ज- समुद्र के लाला हो गुण वाला, नेम नगीना तुम ही तो हो) अक्षत द्रव्य धरो प्रभु पूजो, द्रव्य बिना कोई भाव नहीं है । श्रीजिन शासन वासित आगम, द्रव्य भाव की जोड़ सही है || टेरे || गूढ हृदय निर्दय जन कोई, प्रभु पूजा विधि पाप कही है । शल्य सहित तिर्यञ्च का आयुष, बन्ध गति सविशेष गही है || अक्षत० || १ || नारक तिरि आयु स्थिति बन्धक, आश्रव टालो जो पाना नहीं है । किरिया से कर्म ओ कर्म से बन्धन, बन्धन से होता दुस ही है | अक्षत●