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श्रीगिरनार तीर्थ पूजा
३०६ सेवोभवि० ॥ गिरिनार गिरि मंडण दुख खंडण, भविजन कीयसुधारा । कर्म प्रपल दलदाह करनमिस, धूप दहो सुविचारा | सेवोमवि० ॥ १॥ सौरी पुरमें जन्म प्रभुनो, समुद्र विजय कुल माणा। शिमादेवी उदर शुक्ति मुक्ताफल, चित्रानक्षत्र बसाना ॥ सेवोमवि० ॥२॥ च्यवन जन्म कल्याणक प्रभुना, सौरीपुरमे जाना । गिरनार गिरि पर सहसा वनमें, दीक्षाग्रही सुख खाना ।। सेत्रोमवि० ॥३॥ चौसठ इन्द्र करे उछरगे, जिन सेवा मनुहारा। कृपा चन्द्र ए प्रभुने जानो, निश्रेयस दातारा ॥ सेवोमवि०॥४॥ मंत्र-ॐ ही श्री पर०....''धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ पंचम दीपक पूजा ॥
॥ दोहा ।। पांचमी पूला दोपनी, प्रकटे ज्ञान उद्योत । करो भविक जगनायनी, मन वांछित सुसहोत ॥१॥ शिवादेवीनो लाइला, अतुल वली वडवीर। श्यामसलुणो नाइलो, नेमिनाथ सुसमीर ॥२॥
रागनी कल्याण || अहो प्रमु पूजा रचो चित चगे॥ अहो० ॥ रेवत गिरि पर नेमि जिनेश्वर, केरल लदो मुखसगे ॥ अहो प्रभु०