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बृहत् पूजा संग्रह
॥ १ ॥ व्यार निकायके सुरसुरी मिलके, त्रिगडो रचे अतिरंगे || अहो प्रभु० || २ || समवसरण में राजे प्रभुजी, देशना दे भवभंगे || अहो ० || ३ || साधु साधवी वैमानिक देवी, अग्निकूण उमंगे || अहो० ||४|| ज्योतिषि भवनपति व्यन्तर सुरी, रहे नैरित जिन संगे || अहो ० || ५ || वायव विदिशे एहिज देवो, जिनवाणी सुणे रंगे || अहो० ॥ ६ ॥ वैमानिकसुर मानव-स्त्रीजन, ईशान दिशिमें संगे || अहो० ॥ ७ ॥ वारपर्षदा जिनवाणीसुण, मगन हुवे मन रंगे || अहो० ॥ ८ ॥ गोघृत भरि मणिपात्र अनूपम, दीपक करो मन चंगे || अहो० ॥ & ॥
मंत्र — ॐ ह्रीं श्री पर०
दीपकं यजामहे स्वाहा ॥
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॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥ दोहा ॥
अक्षत अक्षत लेईने, स्वास्तिक रचो विशाल | ज्ञानादिकत्रण पुञ्ज थी, पामो मंगल माल ॥१॥ राजीमतीको छोड़के, नेमि चढ्या गिरनार । रथनेमि राजीमती, लीधो संयमभार ॥२॥ ॥ रागनी माड ॥ नेमिजिन पुजो तो सही, प्रभु रैवतगिरि सिणगार ।