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वृहत् पूजा-संग्रह त्रिकरण योगकरी प्रभुपूजो, चितधरी शुभ भावना ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ च्यारनिक्षेपे जिनवर जाणी, मनमन्दिर में लावना ॥प्रभु०॥३॥ अनुयोगद्धार आवश्यकसूत्रे, वेदनिक्षेप सुहावना ॥ प्रभु० ॥४॥ ठवणा समवसरण तिहुं दिशिमां, प्राची भाव कहावना ॥ प्रभु० ॥ ५ ॥ द्रव्येजिनवर श्रेणिक पाहा, नाम ऋषभादि सुहावना ॥ प्रभु० ॥६॥ इमविधि प्रभुकी भक्ति करीये, शमरस अमृत श्रावना ॥ प्रभु० ॥७॥ कृपा करिने साहिब मुझने, कीजे कृतार्थ पावना ॥ प्रभु० ॥ ॥ ८ ॥ मंत्र--ॐ ह्रीं श्री पर०... पुप्पं यजामहे स्वाहा ॥ || चतुर्थ धूप पूजा ॥
॥दोहा॥ यादव कुलनो चन्दलो, ब्रह्मचारी शिरमोड । वावीसमा जिनवरतणी, पूजा करो कर जोड ॥१॥
॥ सोरठा ॥ अगर चन्दन घनसार, सेल्हारस मांहि मेलिये। मृगमद अम्बर सार, धूपघटा करिपूजिये ॥२॥
॥ रागनी सोरठ॥ . सेवोभविने जिणंद सुखकारा, करि धूप धूम मनुहारा।