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श्रीगिरनार तीर्थ पूजा ३०७ फरसत लोहा कंचन, तिम होवे कीटक भृङ्ग ॥ वि० ॥२॥ शिवादेवी अगज हो प्रभु, श्यामवरण धु ति चग ॥ वि० ॥३॥ चरण युगल कच्छपसम प्रभुना, कर पकज जल सग ॥ वि०॥ ४ ॥ वदनचन्द्र अकलकित कीनो, भाल अर्ध शशि अग ॥ वि० ॥ ५ ॥ निलोत्पलसम नेत्रयुगल फुनि, कामराग थयो भंग ॥ वि० ॥ ६॥ केशरचन्दन मृगमद अम्बर, प्रभुपूजो मनरंग ॥ वि० ॥ ७ ॥ मंत्र-ॐ हीं श्रीपर०.. • केशरं चन्दन यजामहे स्वाहा ।
॥ तृतीय पुष्प पूजा ॥
॥दोहा॥ तृतीय पूजा जिनवरतणी, करे भविक उजमाल । फूल सुगधी लेइने, चाढे भरि भरि थाल ॥ समवशरणमां सुरकरे, पुष्पवृष्टिधरिभक्ति । तिमश्रावक शुभ भावथी, पूजा करे यथाशक्ति ।
॥ रागनी वृन्दावनी सारंग ॥ प्रभु अरचा रचो मिल भविजना। नाना-विधना फूल सुगधी, लेई तुम थावो इकमना ॥ प्रभु० ॥१॥