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श्री शातिनाथ पचकल्याणक पूजा ३०३ कदी ॥ अंचली ॥ शांन्ति जिनेश्वर जग-परमेश्वर, जग शान्ति हुलमदी ।। श्रीशांति० ॥१॥ च्यवन१ जन्मर दीक्षा३ अरु केवल४ , मोक्ष५ परम सुख नंदी ॥ श्रीशांति० ॥२ ॥ तीर्थकरके पाँच कल्याणक,उत्सव करे सुर बन्दी ॥श्रीशांति. ॥३॥ तिम श्रावक उत्सव करे भावे, समकित सार गहंदी ॥ श्रीशान्ति० ॥ ४ ॥ तपगच्छगगनमें दिनमणि सरीखा, सरि श्रीविजयानदी ॥ श्रीशाति० || प्रथम शिष्य श्री लक्ष्मी विजयजी, कुमति कुपंथ निकदी । श्रीशान्ति०॥६॥ तस शिष्य मुनि श्री हर्ष विजयजी, मुनिजन हर्ष अमंदी ।। श्रीशान्ति० ॥७॥ तस लघु किंकर मदमति अति, वल्लभविजय कहदी । श्रीशान्ति० ॥८॥ शक्ति नहीं पिण भक्तिके वस, जिन गुण कथन करदी | श्रीशान्ति ॥६॥ सवतशशी शर५ चेद४ युगलर है, प्रभु श्रीवीर जिनंदी । श्रीशान्तिः ॥१०॥ आतम निधिः कर२ शशी? वसु८ जाता१६, विक्रम सालसुहदी | श्रीशान्ति० ॥ ११ ॥ कार्तिक सुदि एकादशी जगमे, देव प्रमोध कहदी ॥
४ दिनमणि- सूर्य । - वीरसवत् २४५१, आत्म संवत् २६, विनम सवत् १६८१ ! 8 माता-ज्ञाताधर्मक्या अध्तयन १६ ।