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वृहत् पूजा संग्रह अवधि ज्ञानी । आये निज कारज मानी रे। बलिहारी धीर वीर ॥ शांति० ॥१॥ मासांते जेठ की काली, तेरस भरणी शशी भाली । मन वाक योग कियो खाली रे। बलिहारी धीर वीर ॥ शांति० ॥ २ ॥ शुक्लध्यान तीसरा जानो, चौथे शेलेशी मानो। लघु अक्षर पांच प्रमानो रे । बलिहारी धीर वीर ॥ शांति० ॥३॥ अवशिष्ट कर्म क्षय कीना, पद मोक्ष निजातम लीना। हुआ जनम मरण भय खीनारे । बलिहारी धीर चीर ॥ शांति० ॥४॥ आतम लक्ष्मी प्रभ धारी. दियो आवागमन निवारी। कल्याणक उत्सव भारीरे । बलिहारी धीर वीर ॥ शांति ॥५॥ निर्वाणोत्सव सुर करके, पूजन शाश्वत जिनवर के। गये नंदीश्वर चित धरकेरे। बलिहारी धीर वीर ॥ शांति० ॥६॥ करके उत्सव सुर जावे, आतम लक्ष्मी फल पावे । वल्लभ मन में हर्षावरे । बलिहारी धीर वीर ॥ शांति० ॥७॥
॥ काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ॥ श्रीशान्तिजिनपारंगताय जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥५॥
(धन्याश्री) पूजन शिवतरु कंदी, श्रीशांति जिन पूजन- शिवतरु