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वृहत् पूजा-संग्रह सुखशय्या आनंदसे देखे, सुपने दस और चार ।।सुपन०॥१॥ गज१ वृपर केसरी३ लक्ष्मी४ देवो, फूलमाला५ श्रीकार । चंद्र६ सूर्य धज८ कुंभा पदमसर१०, रत्नाकर११ . जलवार ॥ सु० ॥ २ ॥ देव विमान१२ रतनकी राशि१३ निर्धूम अग्नि१४ झार। इन सुपनोंका क्या फल होगा, कहिये मुझ भरतार ॥ सु० ॥ ३ ॥ सुन हर्षित नृप कहे सुन देवी, सुपन अति मनोहार। सुत होगा तुझ तेज प्रतापी, तीर्थकर सुखकार। सुनो सुनो सुपने मंगलकार, सुपने मंगलकार ॥ सु० ॥ ४ ॥ अथवा होगा छै खंड स्वामी, चक्री रतन चउद धार । अचिरा बोलो एवं भवतु, नाथ वचन सतकार ।। सु० ॥ ५ ॥ आतम लक्ष्मी हर्षे मनाती, पति आज्ञा अनुसार । अपने शयनागारमें पहुँची, वल्लभ हप अपार ।। सु० ॥६॥
। काव्यम् ।। गर्भस्थोऽपि च संस्तुतो हरिगणैर्जातस्तु हेमाचले, सद्भक्त्या सुरनायकैः शुचितरैः कुम्भाम्बुभिः स्नापितः । दीक्षाकेवलबोधपर्वणि महानन्दाप्तिकाले सुरः सबोधाप्तिकृतेऽचितो जिनवरः श्री शांतिनाथोऽत्रतात् ॥१॥