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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा २८६ ॐ ही श्री परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीपरमेष्ठिने जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥१॥ || द्वितीय जन्मकल्याणकपूजा ||
॥दोहा॥ देव गुरु और धर्मको, यातचीत परधान | जागरणा रानि करी, पालन सुपन निदान ॥१॥ प्रातःकाल बुलायके, नैमित्तिक समुदाय । विश्वसेन फल पूछिया, राणी सुपन सुनाय ॥२॥ नैमित्तिक कहे नरपति, सुनो हमारी वात । चउद सुपन हैं देखती, जिन चक्रीकी मात ॥३॥ इस कारण सुत होयगा, तीर्थकर महाराज । अथवा चक्री होयगा, राजवश शिरताज ॥४॥ दान मान सनमानसे पडित किये विदाय । राणी अपने गर्भकी रक्षामें चित्त लाय ॥॥
(तर्ज ठुमरी जाओ जाओ नेमि पिया) धन्य जिनराज जनपद शांति दातारे ॥ धन्य० ॥ अचली || गर्ने प्रभु आये जन, रोग कुरुदेश तर। नाना
१ जनपद देश।