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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा २५७ अवेयक नरमे भवे, दशम मेघरथ१० राय । तीर्थकर शुभ नामको, वांधे जिनपद दाय ॥३॥ अंतिम११- स्वर्ग एकादशे, द्वादशमे१२ अवतार । हेमचद्रगुरु भाखिया, शांति चरित विस्तार ॥४॥ समकित सबका मूल है, ज्ञान चरण आधार । तीनों जन पूरण मिले, तब होवे भवपार ॥५॥
(तर्ज वनजारा की-श्रीसुविधि जिनंद सुसकारी)
हुये निजगुण समकित धारी। आतम शांति सुखकारी ॥ अंचली ।। श्रीपेण रतनपुर राजा, नीतिमंदों शिरताजा, अभिनदिता तस नारी। आतम शांति० ॥१॥ इंदुपेण निन्दुषेण नामा सुत दो नृपमन अमिरामा, कला यौगन क्यमें धारी। आतम शांति० ॥२॥ पुण्योदय सुगुरु पाया, उपदेश सुनी सुसदाया, लिया सममित मिथ्या टारी ॥ आतम शाति० ॥३॥ एक दिन दोनों भाई चन मे, लगे लड़ने ईर्षा मनमें, वेश्या, कारण अवधारी। आतम शांति ॥४॥ दोनों अभिमानी पलिया, -अन्तिम स्वर्ग सर्वार्थसिद्ध नाम का २६वां देवलोक ।
कौशाम्बी नगरी की रहनेवाली 'अनंतमतिका' नाम की वेश्या । कोशांची नगरीका राजा'चल' नाम उसकी श्रीमती नामकी